पवित्र आत्मा ! आ जा !

पवित्र आत्मा ! आ जा,,,,,     

कलीसिया का एक परंपरागत प्रार्थना है, यह । बेनी क्रयोत्तोन स्पिरित्तूस  (Veni Creator spiritus ) । पवित्र आत्मा अपने हृदय और जीवन में पधारे, यह एक विश्वासी की इच्छा और माँग है । जो ‘आ जा’ शब्द से विदित होता है । एक  विश्वासी की याचना-प्रार्थना में मुख्य विनती पवित्र आत्मा के लिए हो । बुरे होने पर  भी यदि तुम लोग अपने बच्चों को सहज ही अच्छी चीजें देते हो, तो तुम्हारा स्वर्गिक पिता माँगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों नहीं देगा? (लूकस 11:13 ) ।
     लैटिन भाषा में ‘वेनी क्रेयात्तोर स्पिरित्तूस’ वाली प्रार्थना  में पवित्र आत्मा को सृष्टिकर्ता बुलाते हैं । ईश्वर अपना  सृष्टिकर्म पवित्र आत्मा के ज़रिए पूरा करते हैं । आदि में ईश्वर ने पृथ्वी और आसमान की सृष्टि की । पृथ्वी सुनसान और उजाड थी । अथाह गर्त पर अन्धकार छाया हुआ था औंर ईश्वर का आत्मा सागर पर विचरता था  (उत्पत्ति 1:1-2) ।
    यहाँ ईश्वर का आत्मा मूल भाषा का ‘रूहा’ शब्द का अनुवाद है । रूहा मानें अरूपी है । सृष्टिकर्म में पिता ईश्वर और पिता के वचन रूपी पुत्र से जुडा हुआ सक्रिय ईश्वर है, पवित्र आत्मा । आदि में जैसे पृथ्वी और स्वर्ग को बनाया, वेसे पवित्र आत्मा सबों की सृष्टि करता हे और सबों को नवीन बनाता हे  । आदि में जैसे किया, वैसे पवित्र आत्मा अब और सदा सबों को बना कर नवीन बनाता रहता है ।
      पवित्र आत्मा क्रे क्रियात्मकप्नक्रिया में सेबसे मुख्यता इसको है कि पिता के वचन रूपी पुत्र ने मनुष्यावंतार ले लिया । पिता ईश्वर ने क्रियात्मक पवित्र -आत्मा में वचन रूपी ईरवर से सबकी सृष्टि करते हैं । आदि में,शब्द था , शब्द ईश्वर कै साथ था और शब्द ईश्वर था । वह आदि में ईश्वर के साथ था । उसके द्वारा  सेबकुछ उत्पन्न हुआ, और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ (योहन 1 1-3) ।
       पिता के वचन रूपी पुत्र-ईश्वर के मनुष्यावतार में पवित्र आत्मा की सक्रिय दस्तंदाजी है पवित्र ग्रन्थ साक्ष्य दे चुका है । स्त्री-पुरुष, संसंर्ग से न होकर अस्वाभाविक सुसमाचार इसके बारे में स्वर्ग से मिला । प्रणाम ! प्रभु की कृपापात्री । प्रभु आप के साथ है (लूकस 1 :28) । मरियम ! डरिये नहीं । आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त हे । देखिए , आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेगी और उनका नाम ईसा रखेंगी (लूकस 1 : 30-31) ।
    यह कैसे हो सकता है (लूकस 1 : 34) । समाचार सुनकर मरियम बेचैन हुई तो स्वर्गदूत ने बेशक वादा दिया, पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पडेगी’ (लूकस 1 : 35) ।
      अपने अस्तित्व के बारे में अपने जीवन के एक मुद्दे के प्रति मरियम ने गंभीर सवाल उठाया । जब अपनी सगाई हो चुकी है, तब ईश्वर का यह वचन बिलकुल कठिन लगा । पति के संसर्ग के बिना यदि मैं प्रभंवती’ हो जाऊं तो समाज में अपमानित होना पडेगा । लोग मुझ पर पत्थर मारेंगे। किन्तु स्वर्गदूत ने जो उत्तर दिया वह मरियम को स्वीकार्य लगा । मरियम ने कहा , देखिए मैं प्रभु की दासी हुँ। आप का कथन मुझ में पूरा हो जाये (लूकस 1:38) ।
         हमारें जीवन में ऐसे संकट आ सकते हैं, चाहे आर्थिक हो या दाम्पत्य संबन्धी हो, कैन्सर का रोग हो, सन्तानॉ का भटकाव हो, चाहे जो भी हो, पवित्र आत्मा के अभिषेक से सान्त्वाना मिलेगी । पवित्र आत्मा के वरदानों और फला से हम अभिषिक्त हो जायें तो प्रस्तुत संकट मेँ ईश्वर-प्रेम, परप्रेम और प्रेम का आनन्द हसें शान्ति प्रदान करेंगें । तब संकटों का दर्द क्षमापूर्वक हम सह पाएँगे । इस शक्ति से हम दूसरों से दया पा सकेंगे, सबों के साथ दयापूर्वक बर्ताव कर पाएँगे दूसरों की  सेवा कर सकेंगे, ईश्वर और भार्ई-बहनों से ईमानदारी कें साथ आत्मसंयम और सौम्यता के साथ बर्ताव ,कर पायेंगें । पवित्र आत्मा ‘ आ जा’- यह प्रार्थना हमारे अधरों में सदा हो तों ईश्वर हमें आतेमा का अभिषेक और सान्त्वना देते रहेंगें । पवित्र आत्मा आ जा हम बार बारयह प्रार्थाना करने का प्रशिक्षण पायें ।
     जैसे पवित्र आत्मा हमें सान्त्वन‌ा और शक्ति प्रदान करता हैं, वैसे हमारे लिए वे एक मददगार भी हैं । यदि तुम मुझें प्यार करोगे , तो मेरी आज्ञाओं का पालनं करोगे  । मैं पिता से प्रार्थना करूँगा और वह तुम्हें एक दूसरा सहायक प्रदान करेगा, जो सदा तुम्हारे साथ रहेगा (योहन  14:15-16 ) । सहायक आत्मा संजीवन पानी है । जो मुझ में विश्वास करता है , वह अपनी प्यास बुझाए । जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है -उसके अन्तस्थल से सजीवन जल की नदियों वह निकलेंगी । उन्होंने यह बात उस आत्मा के विषये में कही,जो उनमें विश्वास करने वालो को  प्राप्त होगा ‘ (योहन 7: 38-39) 
     जो यह संजीवन  पानी पीता है ,वह सहज पानी नहीं पीता ,बल्कि अतिस्वाभाविक जल पीती है ।  जो यह संजीवन  पानी पीता है ,वह अपनी आत्मा की प्यास बुझाती है साथ ही दूसरों को पेय जल दे पाता है । जो मेरा दिय हुआ  जल पीता है ,उसे फिर कभी प्यास नहीं लगेगी । जो जल मैं उसे प्रदानं करूगा, वह उसमें वह स्रोत बन जायेगा ,जो अनन्त जीवन के लिए उमडता रहता है (योहन 4:14)
        इस प्रकार संजीवन पानी का स्रोत बन जाने के लिए एक व्यक्ति ईसा की आज्ञाओं का पालन करके ईसा कों प्यार करें । तभी वे पिता से प्रार्थना करके हमें पवित्र आत्मा को प्रदान करेंगे । इसलिए पवित्र आत्मा को पाने के लिए प्रार्थाना  के साथ ईश्वर की आज्ञाओं को ईमानदारी से पालने की प्रवृत्ति भी अवश्य हो । समारी स्त्री ने यह जल पीना  चाहा और प्रार्थना की ईसा ने उसे पश्चात्ताप की ओर चलाया । उसने इस प्रकार पवित्र आत्मा को स्वीकारा और वह संजीवन पानी का स्रोत बन गयी, वह दूसरों को संजीवन पानी देने मे समर्थ हुई ।
     उस स्त्री ने अपना घडा वहीं छोडे दिया और नगर जा कर लोगों से कहा, चलिए एक मनुष्य को देखिए जिसेने मुझे वह सब, जो मैंने किया, बता दिया है (योहन 4 : 29) । उसके जरिए अनेकों को संजीवन पानी मिला । उन्होंने उस स्त्री  से कहा,अब हम तुम्हारे कहने के कारण ही विश्वास नहीं करते। हमने स्वंय उन्हें सुन लिया है और हम जान गये कि वह सचमुच संसार के मुक्तिदाता है (योहन 4:42)। इस प्रकार हम में से हर एक को, संजीवन पानी स्वीकारने और दूसरों के प्रति संजीवन पानी का स्त्रोत बन जाते के लिए पवित्र आत्मा मदद करेंगे।
       हमारे मातृराज्य के भाई-लोगों में अधिकांश इस संजीवन पानी से अब तक वंचित हें । अत: हम सोच-विचार करेंकि क्या हम सही जल स्रोत हो कर काम नहीं करते?  ईसा को प्यार करके उनके आदेशों का पालन करें तो हम उनके प्रेरित हो कर रूपायित होंगे । उनका बुलावा पा कर पुरोहित और समर्पित होकर विभिन्न जीवन-क्षेत्र जाने को विमुख न होंगे । इस प्रकार ईसा  के प्रेरित हो जायें, में पुरोहितों और समर्पितो की संख्या ज्यादा घट चुकी हे । दुनिया भर में यह कमी नज़र आती है । अत: इसका अर्थ है कि ईसा के संजीवन पानी को पीने वालों कीं संख्या कम है । अत: हम यह पानी काफी पियें, ईसा के प्रेरित हो जायें ।

­­­­­­­

          प्रथम पेंतकोस्त के दिन जो कुछ हुआ, उसकी याद करें । जब पेत्रकोस्त का दिन आया और सव शिष्य एक स्थान पर इकट्ठे थे; तो अचानक अँन्धी जैसी आवाज़ आकाश में सुनाई पडी और सारा घर, जहाँ वे बैठे हुए थे, गूँज उठा । उन्हें एक प्रकार की आग दिखाई पडी, जो जीभें में विभाजित हो कर उनमें हर एक के ऊपर आ कर ठहर गयी । वे सब पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो गये और पवित्र आत्मा द्वारा प्रदत्त वरदान के अनुसार भिन्न भिन्न भाषायें बोलने लगे (प्रे.च. 2 : 12)  । अग्नि जीभ के प्रतीक के रूप में यहाँ आत्मा प्रकट हुआ । आग स्वयं जलती हें, दूसरों को जलाती हे, दूसरों को गरम कराती हे, प्रकाश देती है, प्रज्वल कराती है, उबालती हें, चलाती है; पवित्र आत्मा इस प्रकार की शक्ति और शक्ति का स्रोत है !
        पेंतक्रोस्त के दिन पवित्र आत्मा की शक्ति पवित्र माता और शिष्यों पर उतर आयी तो उनमें नया चैतन्य आ गया, मनोभावों में परिवर्तन हुआ, कर्मों के करने लायक ओज मिला, ये सब अग्नि स्वरूपी आत्मा के चरित्र को सदा प्रकट करते हैँ । शिष्य ज्यादा पढे लिखे न थे, किन्तु वे पवित्र आत्मा से प्रवक्ता – वर स्वीकार कर कई भाषाओं में बोले ! शिष्यों का भाषण सुन कर लोग चकित ऱह गये । वे उस बात पर विश्वास न कर पाये । कुछ व्यक्तियों ने उनकी हँसी भी उठायी, क्योंकि वे इसके रहस्य से अज्ञात थे । ये तो नयी अंगूरी पी कर मतवाले हैं  (प्रे.च 2:13) । सबसे चमत्कारी बात  यह हुई कि जो शिष्य तब तक यहूदियों से डरते थे, वे डरे बिना यहूदियों पर दोष लगाते हुए बोलने लगे । पेत्रुस ने ग्यारहों के साथ खडे होकर लोगों को संबोधित करते हए ऊँचे स्वर से कहा, -यहूदी भाइयों और येरुशालेम के सब निवासियो । आप मेरी बात ध्यान से सुनें और यह जान लें कि ‘ये लोग मतवाले नहीं है, जैसा कि आप समझते है । अभी तो दिन के नी ही बजे हैं । ‘ … नाज़री ईसा को … क्रूस पर चढवाया और मरवा डाला हैं  (प्रे.च 2; 14 ,15 ,22 .23) । पवित्र आत्मा से प्रेरित होकर पेत्रुस ने, भाषण किया तो कईं व्यक्ति पश्चात्तापी हौ गये । यह सुन कर वे मर्माहत हो गये और उन्होंने पेत्रुस तथा अन्य प्रेरितों से कहा, भाइयों! हमें क्या करना चाहिए ? (प्रे.च 2 : 37) ।
        पवित्र आत्मा की अग्नि शक्ति में शिष्य खुद प्रज्ज्वलित हो उठे। उनका भाषण सुन कर लोग इससे ज्वलित होने लगे, वे चेतना युक्त हो गये,कर्मण्य हो गये। इस प्रकार की आत्मा-शक्ति हमें भी चाहिए। हम भी प्रज्ज्वलित हो उठें। जो हमें सुनते हैं वे भी प्रज्वलित हो जायें,कर्मण्य हो जायें। यही सही ईसाई जीवन है। यही सही प्रेरिताई जोश है। अत: पवित्र आत्मा आ जा,आ जा! यह प्रार्थना हम रटते रहें,हम न भूलें ।
  पवित्र आत्मा  ! आ जा !

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ