क्रीस के पथ पर ………..
इंसा की काल्चरी यात्रा यथार्थ में गेथसेमनी से शुरू हुई । अपने को दुनिया में भेजने वाले प्रभु ईश्वर की इच्छा निभाने का फैसला जो हे, वह है क्रूस लेना । इस मुक्तिकारिणी कर्म को निभाने के लिए क्रूसी मृत्यु अनिवार्य रही। इंसा क्रूस पर मनुष्य के रूप में मरे न कि ईश्वर के रूप में । जैसे मनुष्य सहता हे, सारे दर्द और यंत्रणाएं पूर्णत्त: आपने सहीं । त्तीव्रवेदना के समय आपने तीव्रप्रार्थना की । उनका पसीना खून की तरह टपक पडा (लूकस 22: 44) 1
गंथसेमनी के जैतून के पेड ईसा के आत्मसमर्पण के साक्षी बन कर कायम रहे ।
मैं चाबुक की मार खा कर क्रूसितहुआ तो मेघ – गर्जन हुआ । तुम गैर इसाइयों के पास जा कर अपने इसा ” विस्वास ” की खुली घोषणा करने में कदापि लज्जित न हो जाओ । ‘दि पाशन आँफ क्रेस्ट’ नामक’फिल्म में ईसा का रोल जि कविंसेयल नामक व्यक्ति ने लिया .. उन्होने एक विद्यार्थी सभा में . जिसमें एक हजार चार सौ छात्रा शामिल थे, भावुकता के साथ इस प्रकारें कहा ।
‘फिल्म में चाबुक से मारने का दृश्य दो भागों में चित्रितं किया । इसके लिए सात सप्ताह लगे । मार खा कर उन्हें घुटन हुईं, घावों में तीव्र दर्द हुआ । क्रूस पर पडे वक्त ठण्डी हवा लग कर शरीर पर चुभने लायक अनुभव हुआ । ठण्ड से बचने के लिए प्रयुक्त ‘हीटरों’ से पैर झुल्स गये 1 षुट्टिग के समय क्रूस पर अकेले पड़त्ते वक्त मानसिक शिथिलता का अनुभव हुआ । ये सब अभिनय के समय हुए तो ईसा को हुईं वेदना , निन्दा ओंर अवहेलना कितनी भयानक हुईं होगी उसने इस अभिनय से जान _लिया 1
इतिहास बताता है
B.C. चौथी सदी में महान सम्राट सिकंदर के ज़माने में एक दण्ड – विधान के रूप में क्र्रूसी मृत्यु कायम हुई । फारस के लोग इस अपरित्कृत दण्ड’-विधान को अमंल में लाये । ए. डी. प्रथम सदी में ईसा मसीह इसका प्रथम शिकार रहे । आम तौर पर यह दण्ड विदेशियों और’निम्ब वर्ग के लोगों को दिया जाता था । इसलिए ईसा ने सेवक का रूप धारण करके क्रूसी मुंत्यु अपनायी, जिसे सन्त पोलुस नें बताया है ।
क्रूसी मृत्यु बेहद निंद्य, क्रूर ओंर तीव्र दण्ड-विधान थी । यह सबसे दीन-हीन और पाशवीय ‘दण्ड विधान है 1 मर्सीह हमारे लिए शापित बने और इस तरह उन्होंने हम को संहिता के अभिशाप से मुक्त किया (मला 3 : 13) । ईसा के पहले क्रूस पराजय, अपमान और कमजोरी का चिहन था । मगर जिन्होंने गरजते सागर को शान्त किया, अनेकों को आत्मा का संजीवन पानी दे दिया, जो पानी के ऊपर से चले, वे क्रूस पर तडप कर मरे तो न रुकते प्रेम, करुणा ओर महत्व का चिह्न हो कर क्रूस बदला ।
यंत्रणाएँ जिनकी सानी नहीं
इंसा को चाबुक से मारा, जो निर्ममता से किया, क्योंकि रोमी और यहूदी स्थाई दुश्मन , थे। यही नहीं यहूदी रोमियों की. गुलामी में जीते थे । इंसा यहूदी थे अत: सैनिकों ने ईसा को कूँरता से मारा । कठिन यंत्रणा देकर उन्हे पीलातुस के सामने पेश किया । उसकी आकृति इतनी विरूपित कीं गयी थी कि वह मनुष्य नहीं जान पडता… था; लोग देख कर ~ दंग. रह गये (इसा’ 52 :14) ।
क्रूस लेते हुए ईसा की कालवरी यात्रा बेहद दंयनीय थी । सबों को दिखाने के लिए अपराधियों को दूर तक चलाया करता था । वस्तुत: हमारे दर्दों को आपने म अपने ऊपर. ले लिया । परन्तु वह हमारे ही रोगों को अपने ऊपर लेता था और हमारे ही दु:खों से लढा हुआ था और हम उसे दण्डित, ईश्वर का मारा हुआ और तिरस्कृत समझते थे । हमारे पापो के कारण वह छेदित किया गया है । हमारे कुकर्मों के कारण वह कुचल दिया गया है (इसा 53:4-5) ।
खुद को मृत्यु के हवाले करने तथा ‘मृत्यु को परास्त करने के लिए इस पृथ्वी मैं एकमात्र व्यक्ति पैदा हुआ, वह है ईसा । ईसा की कब्र कें पास ही सैनिको ने पहरा दिया क्योकिं ईसा के पुनर्जीवन पाने की शंका उन्हें थी । दुनिया के इतिहास को बी .सी. और ए. डी. में दो प्रकार बाँटने का कारण आप की क्रूसीमृत्यु रहा, जिसे हम याद करें।
इंसा के घावों का सन्देश
आज जीवन-दु:ख रूपी क्रूस पर ‘तडपने वाले कम नहीं है । असाध्य रोग, सगे संबन्धियों का निधन, पारिवारिक उलझनें, अर्थिक टूटन, असहाय स्थिति आदि हमें क्रूस ब्लोपा । प्राकृत्रिक वारदातें और दुर्घटनाएँ होंगी तो हम शिथिल होंगे ,
मगर ईसा के क्रूसित रूप पर देखें तो हमारे घायल मन सें उठत्ते समी सवालों को उत्तर मिलेंगे ।
पारिवारिक जीवन में आम तोर पर जो बेमेल, बेचैनी, टूटन आर्दि होते हैं, वे सब क्रूस के मार्ग पर अनिवार्य तत्व मानें । परिवार के सदस्य अपने कर्तव्य निभाये बिना, अपनी मनमानी करें, क्षमा किए बिना दु:ख सहे बिना, हठ धार्मिता के साथ प्रतिक्रिया करें, और ऐसे जीपन बितायें तो हम क्रूस को नहीं स्वीकारते बल्कि ठुकरा रहे हैँ । जो मेरा अनुसरण करना चाहता है वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले (मत्ती 16:24) ।
ईश्वर पुत्र पृथ्वी आकर हमारे साथ रहे जोच्चिक्रूसौं को हटाने के लिए न था, मगर इसके लिए था कि, क्रूस का वहन केसे करें, यह पढाने के लिए था । जहॉ – कहीं हम क्रूस का वहन करने का संकोच करते हें वहॉ हम ईश्वर से अलग होते हैं – इसकी वाद हमें हो ।
क्रूस का प्रेम
मनुष्य की कल्पना के परे सब प्रकार के दुरु ख-भोगों और यंत्रणाऔं से होकर ईश्वर का मेमना चला । आम तौर पर क्रूस पर तडप्ते वक्त अपराधी क्रूस पर चढाने वालों की निब्दों करते थे । अत: अपराधियों की-जीभों को काटने कीं रीति भी चालू थी । मगर ईसा की जीभ नहीं काटी गयी । तीव्र वेदना के बीच में भी आप की जबान से क्षमा और अनुग्रह के शब्द निकले । उन्होंने पिता से प्रार्थना कीं कि इम्हें क्षमा कर क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं।
ईसा के अनन्त प्रेम और दु:ख की पूर्णता ने उसे मुक्ति दायक और कृपादायक बनाया (1 कुरि 13:4) । अपने क्रूस से टपके खून की हर यूँद पवित्र और संजीवन दायक रही । जब आपकी छाती पऱ भाले से वार किया गया, तब जो खून की बूँद निकली, वहं भी सीख्यदायक रही। पश्चात्तापी चोर की भी उन्होंने माफी दी और मुक्ति का वादा किया ।
मुक्ति क्री निशानी, आशा का चिहन
एक ईसाई का अभिमान है क्रूसा । यह विश्वास का अभिन्न अंग भी है। यदि क्रूस नहीं हैं तो वह उस राजा के समान है । जिम्हें किरीट नहीं। ईसा के मुक्तिदायक कर्मों में विश्वास करने वाले को आध्यात्मिक और भौतिक स्तर पर मिलती रक्षा की निशानी है क्रूसा । पवित्र क्रूस से ईश्वर प्रेम, सुरक्षा और ईश्वरीय शक्ति लगातार बहते हैं। पवित्र मिस्सा के अन्त में पुरोहित लोगों को आशीर्वाद देते हैं पवित्र क्रूस के ‘संजीव चिहन से आप सुरक्षित रहें… !
काल्बरी में उठाया गया ईसा का क्रूस हमें यह सन्देश देता है। आँसु की इस तराई में, दु:ख की लूहरों -से युक्त सागर तट पर में आप के सायं हूँ । ईश्वर क्रूसों को यथाकांल इनाम देते हैं। दु:खी शुक्रवार के साथ महान उत्थान का रविवार आएगा । प्रभु की सलीब की चमत्कारी शक्ति के कारण सदियों के बाद भी संकटों का मुकाबलाक्या करके दुनिया भर में फैल कर कलीसिया जीत पा रहीँ है ।,,,,,,,,,,,
THANK YOU
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