Holy Bible Message

बाइबिल का पाठ

 

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      Holy Bible Message: समस्त बाइबिल एक लिखित सन्देश है, जिसे देने वाला स्वयं ईश्वर है तथा पाने वाले सभी युगों के स्त्री-पुरूष । अत: मनुष्यजाति फे लिए ईश्वर का प्रेमपूर्ण विधान समझने और ईश्वर की मुक्तिदायी कृपा ले लाभ उठाने के लिए बाइबिल का पाठ करना आवश्यक है।  बाइबिल का पाठ सर्वप्रथम यूखारिस्त आदि धर्म-विघियों में होता है। वैटिकन महासभा ने उसके पाठ को सहज और सुलभ बनाने का आदेश दिया था । “बाइबिल शिक्षासम्पन्न खजाना है, जिसे खोल कर विश्वासियों के सामने रखना चाहिए, जिससे वे प्रभु के भोज में उसका रसास्वादन कर सकें ” (धर्मं-विधि का संविघान, 51)। इस उदेश्य की पूर्ति के लिए पुरोहितों और प्रचारकों का कर्तव्य है कि वे हर रविवार , पर्व-दिन और प्रतिदिन निर्धारित पाठ सुनायें। विश्वासीगण उसे ध्यान से सुनें और पाठों की शिक्षा हृदयंगम करें-यह कलीसिया की इच्छा है।
        उपर्युक्त पाठ के अतिरिक्त विश्वासी लोग उसका व्यक्तिगत पाठ अथवा अपने परिवार में सामूहिक पाठ कर सकते हैं। ऐसे पाठ से विश्वासियों को बहुत लाभ , होता है । बाइबिल के शब्द ईश्वर के शब्द हैं, इसलिए सबसे पहले बिना टिप्पणी या व्याख्या के मूल पाठ पढना चाहिए। बाइबिल अथवा उसकी किसी पुस्तक को समझने के लिए मूल पाठ से परिचय अनिवार्य है।
       इससे पाठक सहज ही इस निष्कर्ष पर पहुंच सकता है कि बाइबिल मात्र प्राचीन साहित्य की बहुमूल्य मंजूषा नहीं है, न ही इस्राएली प्रजा के धार्मिक और नैतिक सिद्धान्तो का विचित्र संकलन है। बाइबिल कोई ऐसा ग्रन्थ नहीं है, जिसमें किसी लेखक ने ईश्वर के विषय में लिखा है। बाइबिल प्रधानत: एक ऐसा ग्रन्थ है, जिस में ईश्वर मनुष्य को सम्बोधित करता है। पवित्र लेखक इस सच्चाई के साक्षी है । “ये तुम्हरे लिए निरे शब्द नहीं है, बल्कि इन पर तुम्हारा जीवन निर्भर है” (विधि-विवरण 32 :47 ) । “इनका विवरण दिया गया है, जिससे तुम विश्वासकरो कि ईसा मसीह ही ईश्वर के पुत्र है और विश्वास करने से उनके नाम द्वारा जीवन प्राप्त करो” (योहन 20 : 31 ) ।

      बाइबिल पढते समय इस बात की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इस पाठ में आमन्त्रण का भाव निहित है। इसमें लेखक पाठकों को महत्त्वपूर्ण संदेश सम्प्रेषित करते हैं। पाठक यह आमन्त्रण अस्वीकार कर, साहित्य अथवा इतिहास के रुप में भी बाइबिल पढ सकता है। किंतु वह आमन्त्रण स्वीकार भी कर सकता है। तभी वह यथोचित पाठ प्रारंभ करता है। ऐसे पाठ में पाठक लेखक के साथ संवाद प्रारम्भ करने की तत्पर होता है । लेखक अपने विश्वास का साक्ष्य देता है और वही विश्वास पाठक मेँ उत्पत्र करता है। ऐसे संवाद में पुरुषार्थ और मानव अस्तित्व के मूलभूत प्रश्न उठते हैं।

यद्यपि बाइबिल और उस में प्रतिपादित विश्वास, जिसको अपनाने के लिए लेखक आग्रहपूर्ण आमन्त्रण देता है, इतिहास विशेष पर आधारित हैं, तथापि समस्त यानेव-इतिहास उनका लक्ष्य है। बाइबिल के लेखक ऐसे सन्देश के वाहक थे, जिसको पाने वाला मानव-मात्र है, चाहे वह किसी देश या काल का हो। युगों से विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों की भक्त ईसाई मण्डलियाँ इस पवित्र ग्रन्थ से आत्मिक पोषण पाती रही है, उसका मनन कर वे उसे अपने जीवन में र्चारेतार्य करने की कोशिश करती रही है। बाइबिल का पाठ करने से मनुष्य विश्वास का जीबन बिताना सीख लेता है, तथा यही विश्वास उसे पुन: बाइबिल में पैठने की प्रेरणा देता है। ‘
     पाठ और अध्ययन में अन्तर है । प्राथमिकता पाठ की है। यदि श्रद्धा और भक्ति के वातावरण में पाठ किया जाये, तो पाठ प्रार्थना बन जाता है। पाठ किस प्रकार करें? पाठ का समय निर्धारित कर पाठ के पहले एकान्त में कोई व्यक्ति, घर में माता-पिता या कोई और, इस पर ध्यान दें कि हम ईश्वर कौ वाणी सुनने वाले है, अत: उसे श्रद्धापूर्वक सुनना है। पाठ के बाद मौन के क्षण में इस पर ध्यान दिया जा सकता है कि यह पाठ हमारे जीवन पर किस प्रकार लागू है। अन्त. में पाठ से प्राप्त कृपादानों के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया जा सकता है। पारिवारिक पाठ प्रार्थना अथवा भजन के साथ समाप्त किया जा सकता है। कितना सुन्दर है वह घर. जिस में यदि नित्यप्रति नहीं, तो समय-समय पर इस प्रकार का पाठ भक्तिपूर्वक किया जाता है ९
     बाइबिल का अध्ययन एक अलग बात है। इस में अध्येता बाइबिल अथवा उसकी कोई पुस्तक इस उद्देश्य से पढता है कि वह प्रत्येक शब्द का अर्थ, प्रसंगों का वास्तविक आशय प्रसंगों की आन्तरिक संगति, लेखन-शैली, रचनाओं की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि आदि समझे। यह कार्यं भी बहुत आवश्यक और रोचक है, किन्तु इसके लिए अधिकतर शिक्षक, टिप्पणी और व्याख्या का सहारा लेना पड़ता है। हर एक युग के बाइबिल-प्रेमी बाइबिल के उन अध्येताओं के आभारी हैं, जो दो हबार वर्षो से उसका अध्ययन करते आये है तथा उसका मूलपाठ सुरक्षित रख कर नये-नये संस्करण एवं नये-नये अनुवाद प्रकाशित करते रहे है। इस तरह बाइबिल का पाठ और बाइबिल का अध्ययन एक-दूसरे के पूरक है।
     निष्कर्ष यह कि बाइबिल एक ऐसा ग्रन्य है, वो पुराना होते हुए भी निरन्तर सामयिक है। वैसे “ईसा मसीह एकरूप रहते हे-कल, आज और अनन्त काल तक” (इब्रानियों के नाम पत्र, 13 : 8), वैसे ही बाइबिल में चिरनवींन ईश-बाणी सुनायी देती है। बाइबिल की पुस्तकों में ईसा मसीह की यह प्रतिज्ञा चरितार्थ होती है, “मै ससार के अन्त तक सदा तुम्हारे साथ हुँ “।

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