पवित्र मिस्सा,,,,
दुनिया का सबसे बडा चमत्कार है, पवित्र मिस्सा। इसका सही अनुभव हमें’ मिलना है, तो इस में भाग लेने के पहले हम आध्यात्मिक और शोरीरिक ढंग से तैयारी करें। आध्यात्मिक तैयारी माने भली पाप-कबूली का संस्कार पायें, फिर परम प्रसाद की रोटी स्वीकारें। शारीरिक तैयारी माने पवित्र मिस्सा की शुरूआत के पहले गिरजाघर में प्रवेश करें। इस प्रकार भक्तिपूर्वक पवित्र मिस्सा में भाग लें. हमारा हदय ईश्वर प्रेम से प्रज्वलित होने का अनुभव मिलेगा ।’ इस प्रकार जो पवित्र परमप्रसाद की श्रेष्ठता समझते हैं, वे पवित्र कलीसिया मॅ सुदृढ रहने, कलीसिया को प्यार करने. कलीसिया के विश्वास सत्यों पर आस्था रखने, विश्वास की बातों को भोग्य बनाने और उनकी घोषणा करने की ईश्वरीय कृपा मिलेगी।
पवित्र मिस्सा के स्वीकरण से प्रभु हमारे हदय में रहते हैं, अत: वे हममें और हमारे जरिए दूसरो में सदा कर्मरत होंगे । ईसा ने उनसे कहा: मेरा पिता अब तक काम कर रहा है, और मैं भी काम कर रहा हूँ (योहन 5:17) । मैं तुम लोगों सै कहता हूँ –जो मुझ में विश्वास करता है ,वह स्वयं वे कार्य करेगा, जिन्हें में करता हूँ। वह उनसे भी महान कार्य करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जा रहा हूँ (योहन 14:12) ।
हम ऐसे ज़माने में जी रहे हैं कि अपने आत्मा को प्रभु के हाथों में सुरक्षित देकर जीवन बितायें । क्योंकि अचानक मृत्यु हो रही है । बाढ , सुनामी, आँधी, भूचाल आदि के कारण लाखों की संख्या में मनुष्य मर रहे हैं । ये प्राकृतिक वारदातें कब कहाँ होंगी, बताना मुश्किल है । यही नहीं नये नये मारक रोगों के कारण मी मृत्यु हो रही हैं । अत: हम सदा ईसा में तैयार रहें, सावधानी से जीवन बितायें ।
ईसा ने कहा, जो मेरा मांस खाता और मेरा रक्त पीता है, वह मुझ में निवास करता है और मैं उसमें (योहन 6: 56 ) । ईसा के शरीर – रक्तों को खाने-पीन से जो सौभाग्य मिलता है. यह है ईसा का हममे सहवास । जब ईसा हममे है तो अचानक मृत्यु हो जाये तो भी डरने की कोई बात नहीं, जो चाहे प्राकृतिक वारदातो से हो या मारक रोगो से। क्योंकि हम सदा प्रभु के हाथों मे है । पवित्र मिस्सा के ग्रहण से ईसा हममे सहवास करेंगे । जब ईसा हममें है तो अचानक मृत्यु हो जाये तो भी डरने की कोई बात नहीं, जो चाहे प्राकृतिक वारदातों से हो या मारक रोगों से। क्योंकि हम सदा प्रभु के हाथों में हैं । पवित्र मिस्सा के ग्रहण सै ईसा हममें रहते है अत: हम सद्फल निकालेंगे। ईसा ने कहा, मैं दाखलता हुँ और तुम डालियँ हाे । जो मुझ में रहता है और मैं जिसमें रहता हूँ, वही बहुत फलता है क्योंकि मुझ से अलग रह कर तुम कुछ नहीं कर सकते (योहन 15:5)। प्रभु ईसा हममे और हमारे ज़रिए कर्मरत्त हैं, हम इसको समझ सकते हैं. इसका अनुभव कर सकते है । यह समझदारी सन्त पौलुस को थी, इसलिए उन्होंने कहा. मैं जो कुछ भी हुँ , ईश्वर की कृपा से हुँ और मुझे उस से जो कृपा मिली, वह व्यर्थ नहीं हुई । मेने उन सबसे अघिक परिश्रम किया हैं – मैने नहीं बल्कि ईश्वर की कृपा ने, जो मुझ में विद्यमान है (1 कुरि 15:10) ।
हम प्रभु ईसा के ईमानदार ईश्वर’सेवक, विशुद्ध भक्त और ईश्वर विश्वासी क्यों न हो , किन्तु दुनिया हमारा शायद आदर नहीं करेगी , मगर प्रभु हर एक का दिल देखते हैं अत: वह हमें मान्यता देंगें, हमे पालेंगे, हमारा विकास करेंगे (1 समू 16:7) ।
यह नहीं, वह सत्य का आत्मा हैं, जिसे संसार ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वह उसे न तो देखता और न पहचानता है । तुम उसे पहचानते हो, क्योंकि वह तुमारे साथ रहता और तुम में निवास काता है (योहन 14:17)।
जो विशुद्धि के साध पवित्र परमप्रसाद स्वीकारते हैं और पवित्र जीवन बिताते हैं, उनसे शेतान डरता हैं, अक्लमन्द तांत्रिक भी । एक बार एक साधना केन्द्र में पश्चात्ताप करके नवीनीकरण में आये एक तांत्रिक ने इस प्रकार साक्ष्य कहा , पवित्र मिस्सा में भाग लेकर ईसा को पाने वाले ईसाइयों के प्रति आभिचार और तंत्रविद्या का प्रयोग करने में मुझे डर है । क्योंकि उसकी प्रतिक्रिया मुझ पर पडेगी, तांत्रिक ने जो कुछ कहा, वह पवित्र मिस्सा में भक्ति और विंशुद्धि के साथ जीने की प्रेरणा तो देता हे । प्रभु ने कहा: याकूब के विरुद्ध आभिचार व्यर्थ है ! इस्राएल के विरुद्ध कोई तंत्र-मंत्र नहीं चलता’ (गणना 23:23) ।
एक दिन जिस मठ में सन्त क्लारा ठहरती थी, सैनिकों ने आ कर उस मठ को घेर लिया । भयभीत होकर चिल्लाते हुए धर्मबहिनें ईश्वर से प्रार्थना करती रहीं । सन्त क्लारा ईसा की मूर्ति लिए निडर बाहर आ गयी । घबराते हुए दुश्मन वहाँ से दौड गये, सन्त क्लारा की जीवनी में यह घटना वर्णित हे । हमारा ईश्वर आज भी जिन्दा प्रभु हे । युगान्त तक हमारे साथ रहने के लिए परमप्रसाद की रोटी में वे रहते हैँ। वे सैनिकों के प्रभु ईश्वर हैं । प्रभु ईसा मानवकुल के पापों के लिए मरे और फिर पुनर्जीवन पा कर ब्रह्माण्ड भर जिन्दा हैं । आगे ईसा को मृत्यु नहीं, इंसा का शरीर खाएँ ओंर रक्त पिएँ तो उन्हें मृत्यु ‘न होगी । वे ईसा के साथ अनन्त काल जिएँगे । पवित्र ग्रन्थ कहता है: मैं जिस रोटी के बारे में कहता हूँ, वह स्वर्ग से उतरती है और जो उसे खाता है, वह नहीं मरता (योहन 6:50) । ईसा ने कहा: मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ यदि -तुम मानवपुत्र का मांस नहीं खाओगे और उसका रक्त नहीं पियोगे, तो तुम्हें जीवन नहीं प्राप्त होगा (योहन 6:53) । जो मेरा माँस खाता और मेरा रक्त पीता है, उसे अनन्तजीवन प्राप्त हैं और मैं उसे अन्तिम दिन ,पुनर्जीवित करूँगा (योहन 6:54) । मेरा माँस सच्चा भोजन है और मेरा रक्त सच्चा पेय (योहन 6:55) । जिस तरह जीवन्त पिता ने मुझे भेजा है, और मुझें पिता से जीवन मिलता है उसी तरह जो मुझे खाता है, उसको मुझ से जीवन मिलेगा (योहन 6:57) ।
युगान्त तक हमारे साथ रहते पवित्र परमप्रसाद को सदा आराधना, स्तुति और महत्व हो ! आमेन ।
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