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Jesus happy |
यीशु मसीह की खुशी,,,,,,,,
उसी घडी ईसा ने प वित्र आत्मा से ,परिपूर्ण हो कर आनन्द के आवेश में कहा, पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तू ने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों पर प्रकट किया है । हाँ, पिता यहीं तुझे अच्छा लगा (लूकस 10:21 ) ।
इस्राएल के बारह गोत्रों के स्थान पर बोरह प्रेरितों को चुन कर सुसमाचोर प्रचार के लिए भेजने क्रे बाद (लूकस 6:12-16, 9:1-6) उसी दौत्य के साथ 72 व्यक्तियों क्रो शिष्यों के रूप में चुन लिया । ईसा का पथ प्रशस्त करनी उनका मुख्य कर्तव्य था (लूकस 10:1-12) । उनका दोत्य बडी विजय था। बडी खुशी के साथ वे वापस आये, अपने अपने चमत्कारी अनुभव बाँटने लगे । शिष्यों के अनुभव से ईसा भी आनन्दित हो उठे। इस सन्दर्भ में ईसा ‘ने कुछ बातों की अभिव्यक्ति की, वह है इस लेख का प्रतिपाद्य ।
दौत्य की सफलता पर सहज रूप से जो खुशी मिलती है, उसका ही नहीं बल्कि और कुछ बातों की सूचना भी सन्तं लूकस दे रहे हैँ । उसे घडी वाली काल-सूचना शिष्यों की वापसी और उनके बँटवारे से इस घटनो को जुटाती है । शिष्यों के आनन्द का कारणं वया हो और वया न हो, यह पढाने के बाद सुसमाचार लेखक ईसा की प्रतिक्रिया पेश करती है । कुछ मुख्य अभिव्यक्तियाँ इन चार वाक्यों में (लूकस 10:21-24) समाहित हैं ।
1. ईसा का आनन्द आनन्दित होना -अगल्लियावो (agalliao) नामक यूनानी शब्द का अनुवाद है । यह अन्दरूनी आनन्द की अभिव्यक्ति है । माता मरियम के भजन के आरंभ में ऐसा आनन्द नज़र आता है । मेरा मन अपने मुक्तिदाता ईश्वर में आनन्द मनाता है (लूकस 1:47) ।
सुसमाचार भाग्यों मुँ आखिरी होकर यह शब्द प्रकट होता है- धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं । खुश हो और आनन्द मनाओ’ (मत्ती 25:11-12) । कयिरत्ते कायी अगल्लियास्ते -(kai agelliaste यह यूनानी मूल शब्द है ) अंगल्लियाओ नामक क्रिया -का पी.ओ.सी’ बाइबिल अनुवाद “आनन्दित हो जाओ” है। इसके समकक्ष लूकस का अवतरण है – खुश हो और आनन्द मनाओ । अगल्लियावो के बदले लूकस ने स्कीर्तावो का प्रयोग किया हे, जिसका अर्थ है-आनन्द मनाओ । छोटे बच्चों की खुशी की अभिव्यक्ति है यह । अन्दरूनी आनन्द जोरदार स्तुति, उछलकूद, नाच आदि के रूप में प्रकट होता है- कुँआरी मरियम का अभिवादन सुन कर एलिज़बेथ के गर्भ में शिशु जैसे आनन्द से उछल-कूद करने लगा, वेसे (लूकस 1:44) !
अन्दरूनी आनन्द फूट कर निकलता है, इस प्रकार है. ईसा की प्रतिक्रिया। इस प्रकार एक असाधारण प्रतिक्रिया यहाँ प्रकट हुई । शिष्यों की सफलता ज़न्य अभिव्यक्ति इस आनन्द का कारण है।
2. पवित्र आत्मा का काम- ईसा का यह स्तोत्रगीत सन्त मत्ती से पेश कर चुके है (मत्ती 11 : 25-27) किन्तु ईसा की खुशी और पवित्र आत्मा की भरमार के बारे में केवल सन्त लूकस ने ही वर्णन किया है। ईसा के मनुष्यावतार से ले कर उनकी मृत्यु तक पवित्र आत्मा की करतूतें निरन्तर होती रहीं । सन्त लूकस ने इसे तथ्य की सूचना खास ढंग से दी है । पवित्रआत्मा पवित्र मरियम पर उतर आये और’ईश्वर पुत्र ने मनुष्य रूप में . अवतार लिया (लूकस 1:35) । आत्मा को पिता के हाथों में देने के साथ वह जीवन खत्म होता हे। ईसा के सारे कर्मों का नेतृत्त्व पवित्र आत्मा करते थे। इसको भी लूकस ठीक से बता चुके है। बपतिस्मा के समय के पवित्रात्मा का अभिषेक , मरुभूमि की परीक्षायें , गलीलिया का आरंभ ,नाज़रेथ की शुरूआत आदि उदाहरण हे। दौत्य की सफलता पा कर शिष्य लौट आये तो पवित्र आत्मा ने ही प्रेरणा दी कि सहर्ष पिता की स्तुति करें। आत्मा की प्रेरणा के लिए सदा कान दें और उसके अधीन रहें, यही था ईसा का जीवना । यहीं भी आत्मा की भर्मार से ईसा बोले। यह एक महान अभिव्यक्ति रहा ।
3. पवित्र त्रिमूर्ति का प्रकटीकरण – पवित्र आत्मा की भरमार में इंसा जो भजन गाते हैं, वह पवित्र त्रिमूर्ति को प्रकट करता हे। ईसा का संचालन करता, अन्दर से प्रेरणा देता ,चैतन्य हो कर पवित्र आत्मा प्रकट होत्ता है । ठीक इसी समय सबके स्रोत लक्ष्य और केन्द्र हो कर पिता रहते हैं । स्वर्ग और पृथ्वी के पिता नामक विशेषण बाइबिल के अनुसार ईश्वर का सूचक है । सृष्टिकर्ता और प्रभु ईश्वर ईसा के. पिता हैं। जो यहाँ प्रकट होता है । इसके साथ भजन गाते ईसा ईश्वर का पुत्र है, पिता और पुत्र के बीच खास और अनन्य संबन्ध कायम है; जौ ईश्वर को ही ज्ञात रहस्य है उस रहस्य की ओर शिष्यों को अन्तर्ज्ञान मिला है । ईश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का मेल-मिलाप है, यह प्रेम में दृढीकृत है । इस मेल -मिलाप में शिष्यों को अन्तर्दृष्टि मिली है । इससे पिता की स्तुति करते हैं ।
4. दरिद्रों को सुंसमाचार-ज्ञानियों और पण्डितों से छिपाया गया और शिशुओं को प्रकट किया गया सुसमाचार जो है, वह ईसा के भजन का प्रमेय है । दुनिया की दृष्टि में जो ज्ञानी थे, वे बौद्धिक ढंग से, युक्ति और तर्क के जरिए जो कुछ समझने का परिश्रम करते थे, और पराजित हो गये , उस रहस्य का उदघाटन शिष्यों पर हुआ है । यह अभिव्यक्ति ईसा के आनन्द का कारण है । लौकिक ज्ञान की पराजय के बारे में पौलुस बताते हैँ (1 कुरि 1:18-24) तब इस हकीकत की और इशारा करते हैं ।
ईश्वरीय रहस्य बुद्धि के इरत्तेमाल से ढूँढ नहीं सकते । ईश्वर उम्हें दया करके प्रकट करते हैं । मनुष्य की दृष्टि में अज्ञ, निरक्षर, नालायन व्यक्तियों को ईश्वर चुन लेते हें । मानवीय दृष्टिकोणों और मानदण्डों को ईश्वरीय योजना औधें खडा करती है । ईसा शिष्यों को शिशु नाम से बुलाते थे। समाज में वे नगण्य थे । शास्त्रियों का पाण्डित्य, फरीसियों का स्थान, पुरोहितों का अघिकार आदि से वंचित मामूली व्यक्तियों को ईश्वरीय योजना के आध्यात्मिक रहस्य प्रकट करते हैं ।
5. युगान्त दर्शन
चंगाएँ, अपदूत निकासी जेसे चमत्कारों से प्रकट हुए,ईश्वर-नाम की शक्ति में भाग लेने में शिष्य समर्थ हुए, इसको वे प्रकट करते हैं। मगर उन्हें दीखी निशानियाँ के पीछे की हकीकत की ओर ईसा ने उनका ध्यान खींचा। मैं ने शैतान को बिजली की तरह स्वर्ग से गिरते देखा (लूकस 10:18-19) । ईसा के नाम पर आशा दी तो शिष्यों ने जो चमत्कार देखा, वह इस पतन की दृष्टव्य निशानियाँ थीं ।
ईसा के आगमन से शेतान का शासन खत्म हुआ । ईश्वर का राज्य, शैतान के राज्य पर हमला करता हैं । शैतान की पराजय के लक्षण हैं, शिष्यों के चमत्कार और उनकी निशानियाँ। मगर इस निशानी के परे जो ईश्वरीय राज्य फूट पडता है , उसकी ओर ईसा ने उनकी दृष्टियाँ खोलीं ।
अब तक प्रतिज्ञाओं पर आधारित प्रतीक्षा मात्र रहा, ईश्वर का राज्य अथवा ईश्वर का शासन, जो अब यहाँ एक हकीकत हो चुका हे । शिष्यों से होकर निभे चमत्कार ईश्वर के राज्य की दृश्य निशानियाँ हैं (लूकस 11:20) । ईश्वर अपना शासन पृथ्वी में शुरू करते हैँ, इसकी पहली किरणें ईसा और शिष्यों के चमत्कारों में प्रकट हुईं । पाप और मृत्यु के अधीन रहे पुराने युग का अवसान और नित्यजीवन को प्रदान करने वाले नये युग का आरंभ इन कर्मो से प्रकट होते हैं । शिष्य इन्हें पहचान पाये, यहीँ ईसा के आनन्द का आधार हे।
सबों का आदिम कारण, स्रोत आखिरी लक्ष्य है, पिता ईश्वर । ईश्वर का दृश्य अवतार -पिता का प्रतिरूप (कलो 1:15) ईश्वरी महत्व को दूर करके सेवक का रूप धारण कर (फिलि 2:6-11) , मसि होकर हमारे बीच रहा ईश्वर वचन (योहन 1:14), यही है, ईश्वर पुत्र । पिता से पुत्र की ओर और उल्टे पुत्र से पिता की ओर लगातार प्रवाहित प्रेम का प्रवाह यही पवित्र आत्मा है। इस त्रिएक ईश्वर की अभिव्यक्ति पाने में चुने गये हैं, हम, शिष्य यह सच जानें। अब तक र्यह रहस्य निगूढ था । अब ईश्वर ने उम्हें प्रकट किया हे । पिता पुत्र के ज़रिए, पवित्रात्मा से दिया जाता प्रकटीकरण हैं । उनके यथार्थ आनन्द का आधार । यही ईसा के आनन्द का कारण है ।
पिता ईश्वर अपना शासन पुत्र ईसा के ज़रिए पवित्र आत्मा की शक्ति से पृथ्वी में अमल में लाते हैं । अब तक यहाँ शासक रहे शैतान को पराजित करके ईश्वर का राज्य आ चुका हैं , उसकी प्रथम किरणों ईसा ने प्रकट की शिष्यों ने भी उन्हें दुहराया। यह पहचान पिता द्वारा उन्हें दी गयी । इसलिए वे खुश हैं अपने दोत्य की सफलता पर ईसा भी आनन्दित हो उठे । केवल निशानियों में अटके बिना उनसे सूचित यथार्थ को देखें । तब तो ईश्वर रूपी प्रेम प्रवाह में हम भी मिलाये जायेंगे हम वैसे ईश्वर की सन्तानें होंगे, ईश्वर के राज्य के हकदार होंगें, यही हमारा लक्ष्य हो, यथार्थ खुशी का आधार भी हो ।
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