स्वर्गद्वार

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स्वर्गद्वार : बथेल

वह भयभीत हो गय और बोला , ‘यह स्थान कितना श्रद्धाजनक ! यह तो ईश्वर का वासस्थान है, यह स्वर्ग का द्वार है (उत्पत्ति 28:17)। माँ का उपदेश और पिता का आशीर्वाद पा कर यात्रा शुरू की, किन्तु वह एक पलायन था । अपनी हत्या करने के तुले भाई से डर कर किया गया पलायना! भयभीत होने का सही कारण भी था । यद्यपि माँ का कहना मान कर उसनें काम किया, किन्तु उसके अन्त:करण ने उसे दोषी ठहराया। पिता जंगली जानवर का मांस खाना चाहते थे, उन्हें भेड का मांस खिलाया तथा भेड का चमडा धारण करके कहा कि मैं एसाव हूँ। इन सबों के पीछे माँ की प्रेरणा थी। अनुग्रह के बदले अभिशाप मिलने की संभावना थी, तभी माँ ने ही धोरज धराया था। वह शाप मुझ पर पडे (उत्पत्ति 27:13)।
       जब वह इतना थक गया कि एक कदम भी न रख सका तो वह रास्ते के किनारे लेटा, थका-माँदा पडा हुआ वह पराजित था। उसके मन में ग्लानि भरी हुई थी। चाकू लिए बडा भाई अपने पीछे आ रहा है, यह सोच कर वह काँप उठा । अपना मंजिल हारान सुदूर है, रास्ते पर अन्धेरा ही अन्धेरा । रास्ते किनारे के एक पत्थर को तकिया जैसे रख कर वह लेटा-परायज का प्रतीक हो कर, याकूब !
    उसका नाम भी हीनता-बोध और भय की सृष्टि करता था-याकूब अर्थात् धोखेबाजा! माँ ने ही उसे यह नाम दिया था । जुडुवे बच्चों में दूसरा होकर वह जन्मा तो पहले आये शिशु की एडी पर पकडा हुआ था । माँ ने उसे यह धारणा दी कि दुबारा जन्म लेने वाला बडे की हैसियत अपनाएगा, जो ईश्वरीय योजना है (उत्पत्ति 25:23)।
        शिकार के बाद लौट आये बडे भाई को ज़ोरदार भूख होती थी। माँ की मदद से उसने लाल मट्टर की खीर तैयार रखी थी, जब भाई ने उसे माँगा तो याकूब उसको धोखा दे रहा था। रास्ते के किनारे लेटते हुए उसने सबकुछ याद किया। वस्तुत: यहाँ सबों की शुरूआत है । भाई मोटा-तगडा है, किन्तु भोला-भाला है । वह शुद्ध दिल वाला है। उसे भविष्य संबन्धी कोई आयोजन नहीं, लालच उसकी कमज़ोरी है। मैंने इस कमज़ोरी का शोषण नीच ढंग से किया। एक बर्तन भर खीर के बदले मैंने जेष्ठ की हैसियत माँगी; वया यह न्यायसंगत कार्य था? इसलिए ईश्वर के नाम पर कसम करा कर खीर दी। उसने पेट भर खीर पी और वह चला गया। उसने यह नहीं जाना कि अपना नुक्सान कितना
भारी है।
       शरीर का बल और मन का बल-दोनों के बीच एक संघर्ष रहा वह। बडा भाई मूर्ख है, सामान्य बातों की जानकारी के बिना वह चलता था। एक प्रकार से सोचें बडे भाई का स्थान उसके सिलसिले में ईश्वरानुग्रह अपने लिए मिला है । मगर धोखे से प्राप्त हैसियत कानूनी ढंग से टिकेगी । झुठ बता कर धोखा देकर पिता से मिले अनुग्रह की क्या दशा होगी?
      किसी का भी सुव्यक्त उत्तर नहीं। केवल भय ही महसूस होता है । आगे करने लायक एक काम है- पलायन करना, कहीं छिप जाना, मगर अब रात हो चुकी है। रास्ता नज़र नहीं आता। आगे दौडने के लिए पैर सशक्त नहीं । रास्ते के किनारे पडा रहा, किन्तु दिल की धडकन ऊँची सुनाई पडती है, इससे शंका हुई कि बडे भाई की कदमों का आहट है। वह चौंक उठा, फिर कब सो गया , पता नहीं ।
         निद्रा की वेला में सपना देखा, उसका यथार्थ अवस्था से कोई संबन्ध नहीं था।, सिर के ऊपर खुला हुआ स्वर्ग । स्वर्ग से पृथ्वी तक की सीढी, सीढियों से स्वर्गदूत उतरते हैं और चढते हैं । सबसे ऊपर ईश्वर खडे हैं । उसने सोचा कि ईश्वर उसे दण्ड देने आये हैं। मगर ईश्वर के वचन विश्यासजनक नहीं लगा। डॉट फटकार नहीं, दोषारोप नहीं, किये धरे पापों के बारें में सूचना तक नहीं । बल्कि प्रतिज्ञाओं की वर्षा, सात प्नतिज्ञाएँ, जो पूर्णता द्योतक हे।
       1. मैं तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को यह धरती दे दूँगा, जिस पर तुम लेट रहे हो   2. तुम्हारे वंशज भूमि के रजकणों की तरह असंख्य हो जायेंगे   3. तुम्हारे और तुम्हारे वंशज द्वारा पृथ्वी भर के राष्ट्र आशीर्वाद प्राप्त करेंगे   4. मैं तुम्हारे साथ रहूँगा   5. तुम जहाँ कहीं भी जाओगे में तुम्हारी रक्षा करूँगा   6. मैं तुम्हें इस देश वापस ले आऊँगा   7. मैं तुम्हें नहीं छोडूँगा (उत्पत्ति 28:10-15) ।
        यह सपना है अथवा दर्शन? ग्लानि में फँसा मन ऐसा एक सपना बना सकता है? मैं ने जो कुछ देखा वह मन की भ्रान्ति नहीं, यथार्थ में ईश्वर  द्वारा दिये गये दर्शन थे, उसने पहचान लिया। उस पहचान ने उसके डर को बढाया। उसने कहा, यह स्थान कितना श्रद्धाजनक ! यह तो ईश्वर का निवास है, यह स्वर्ग का द्वार है (उत्पत्ति 28:17)।
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      पराजित की तराई पर ईश्वर उतर आते हैं, ग्लानि के कारण थका-माँदा होकर सोने वाले के सिर के ऊपर स्वर्ग का द्वार । भयभीत होकर थके माँदे पडे व्यक्ति को ईश्वरीय हाथ। सान्त्वना और शक्ति देता ईश्वरीय सान्निध्य! ईश्वर पलायन करने वाले के पीछे आते हैं तो दण्ड देने और नाश करने के लिए नहीं, बल्कि अनुग्रह देकर ऊपर उठाने आते हैं । यह याकूब का प्रथम ईश्वरानुभव है। आशा प्रदान करता, भय को दूर करता अनुभव जबकि ईश्वर की पहली मुलाकात थी। इसलिए उसने उस जगह को नाम दिया बेतएल-
        ईश्वर ही स्वर्ग है, वह ऊपर कहीं दूर नहीं है बल्कि यहीं है, याकूब को यह धारणा हुई । अपनी कमज़ोरी, कायरता, तज्जन्य कुटिलता, बेईमान बर्ताव ईश्वर इनमें से किसी की परवाह नहीं करते। इन सारी विकलताओं के बावजूद भी ईश्वर ने मुझे चुन लिया है। यह एक शुरूआत था । उसे ज्यादा विकास पाना है। सुदीर्घ दूरी तक उसे दौडना है। यह ईश्वरानुभव भय और हीनता-बोध की राख से ढकी चिनगारी की तरह अवचेतन मन में सोया पडेगा । वह एक अज्ञात शक्ति का स्रोत हो गया ।
                   बथेल एक निशानी है । सदा के लिए सार्थक निशानी। जैसे मनुष्य देखते हैं, वैसे ईश्वर नहीं देखते। भूतकाल का भार जब वर्तमान को डरा कर थकाता है तब ईश्वर भविष्य में होने वाला आनन्द देखता है। पिछले दिनों की पराजय और पतन हमारे भविष्य को छिपाने न दें। जो भी हुआ, सब अच्छा है, जो ईश्वर से अनुमत है। गलतियों के अनुकूल तर्क पेश करना नहीं, बल्कि उससे पाठ पढें। पिछली बातों को भूलें और ईश्वरदत्त प्रतिज्ञाओं को लक्ष्य बना कर आगे बढें (फिलि 3:13)।
       एक बात स्पष्ट है, बडे बडे व्यक्तियों को भी गलती हुई है इनकी लंबी सूचि बाइबिल में है। मदोन्मत्त होकर बेटे को अभिशाप दिया नूह (उत्पत्ति 9:18-29) , फिराऊन से डर कर झुठ बताये इब्राहीम (उत्पत्ति 12: 1 1-13) , बडे भाई को ठगने वाला याकूब, ईश्वर के महत्त्व देने में पराजित होकर प्रतिज्ञात देश में घुसने के लिए असमर्थ हुए, मूसा (गणना 20:12),इस्राएलियों की आराधना के लिए बछडे की मूर्ति बनाने वाले हारून (निर्गमन 32:2-6) , विषय वासना के कारण अन्धा बना सांसन (न्याय 16) किसी मानसिक चंचलता के बिना व्यभिचार और हत्या करने वाले दाऊद-इस प्रकार कितने कृथापात्र! यह केवल पुराने विधान की बात नहीं। ईसा ने जिसे चट्टान बुला कर कलीसिया की स्थापना के लिए चुन लिया, वह पेत्रुस अपने गुरू की उपेक्षा निर्मम ढंग से करता था,ईसा मसीह को ईश्वर -दूषक जान कर उनकी कलीसिया को जड से उखाडने के लिए प्रयत्न किया पौलुस -ये भी इस सूचि में आते हैं।
    वे सब एक पाठ देते हैं । सब का अन्त हूआ, सब टूट गये जब ऐसा विचार आता है,तब ईश्वर नये सिरे से काम शुरू करते हैं । हम जिसे नरक-द्वार समझते हैं, ईश्वर उसे स्वर्ग द्वार बनायेंगे । इसलिए डरने की कोई बात नहीं, सकुशल उठें, ईश्वर कीं प्रतिज्ञा से बल अपनाएँ, आगे सुदूर तक यात्रा करनी है, ईश्वर को तुम्हारी ज़रूरत है । मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हुँ (मत्ती 9:13)। इस प्रकार बताने वाले गुरू हमें बुला रहे हैं । धूल में से उठ कर खडी हो जा… अपनी गरदन की बेडियाँ तोड डाल (इसा 52:2) । ऊपर खुलता स्वर्गद्वार, सामने नज़र आता मुक्ति का रास्ता -देखें । डरो मत वह सदा तुम्हारे साथ होगा।

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