God Jesus

          jesus

क्या ईश्वर प्रति‌ज्ञा-भंग करेंगे ,,,?

       इस्राएल के राजवंश के बारे में प्रकट रूप से आपसी विरोधी दो भविष्यवाणियाँ उत्पत्ति ग्रन्थ (49:10), और समूएल के ग्रन्थ में (13:13-14) देख सकते हैं। उत्पत्ति ग्रन्थ की भविष्यवाणी याकूब के निधन के पहले हर सन्तान को पास बुला कर आशीर्वाद देने कीं पृष्टभूमि में देख सकते हैं। बेटे यूदा को आशीर्वाद देते हुए याकूब ने कहा, राज्याधिकार यूदा के पास से तब तक नहीं जायेगा, राजदण्ड उसके वंश के पास तब तक रहेगा, जब तक उस पर अघिकार रखने वाला न आये (उत्पत्ति 49:10) । इस भविष्यवाणी के अनुसार इस्राएली जनता पर यूदा के वंशज राजा शासन करेंगे । दाऊद से नबी नातान ने आगे चल कर यही बात कही (दाऊद तो यूदा वंशज थे) दाऊद ने प्रभु के लिए एक मन्दिर बनाना चाहा और ऐसा फैसला लिया तो नातान के जरिए ईश्वर ने कहा, जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे और तुम अपने पूर्वजों के साथ विश्राम करोगे तो मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा (2 समृ 7:12-13)। याकूब ने यूदा को जो वादा किया वह ईसा पूर्व सोलहवीं सदी में पूरा हुआ होगा। पूर्वज पिताओं का ज़माना अर्थात् अब्राम- इसहाक- याकूब का ज़माना- बी. सी 19 – वीं सदी से लेकर 16- वीं सदी तक माना जाता है। यूदा वंशज राजा इस्राएल पर शासन करेंगे, यह विश्वास पुराने विधान के ईश्वरीय जनता को सदा होता था। मगर समूएल के ग्रन्थ में बेंचमिन गोत्र के साऊल के घराने से कोई इस्राएल में राज करेंगे, यह विचार भी नज़र आता है।
         समूएल ग्रन्थ के नबी-भविष्य वाणियों की पृष्टभूमि है- इस्राएल के प्रथम राजा के रूप में जिस साऊल को ईश्वर ने चुन लिया था, वह राज-गद्दी के योग्य न रहा तो नबी समूएल के ज़रिए उसका तिरस्कार हुआ, जिसका दृश्य देखें- समूएल ने साऊल से कहा, तुमने मूर्खतापूर्ण कार्य किया है। मैं ने तुम को प्रभु, तुम्हारे ईश्वर का जो आदेश दिया था, तुमने उसका पालन नहीं किया है। प्रभु तुम्हारा राज्य इस्राएल में सदा के लिए स्थापित करने वाला था लेकिन अब तुम्हारा राज्य सुदृढ नहीं होगा। प्रभु ने अपने अनुकूल एक पुरुष चुना है। उसने उसे ही अपनी प्रजा का शासक नियुक्त किया है (1समू 13:13-14)।
    ये दोनों वर्णन एकसाथ रखें और परखें तो कुछ बेमेल बातें नज़र आती हैं। उत्पत्ति ग्रन्थ का राजा यूदा वंशज था, जबकि समूएल ग्रन्थ का राजा बेंचमिन गोत्र का था (1 समू 9:1) इसी प्रकार, समूएल के शब्दों की ध्वनि है कि ईश्वर के आदेशों को न पालने के कारण साऊल को गद्दी का नष्ट हुआ। यदि साऊल प्रभु के आदेशों का पालन करता तो बेंचमन वंशज व्यक्ति इस्राएल पर सदा के लिए शासन करता? याकूब और समूएल की भविष्यवाणियों को कैसे स्वीकारें? या याकूब के ज़रिए ईश्वर ने जो कुछ कहा था उसे आगे चल कर ईश्वर ने ही बदल कर कहा। इन्हीं सवालों का उत्तर इस्राएल के इतिहास की व्याख्या से समझ सकते हैं।

     इस्राएल, दो राष्ट्र

        सुलेमान की मृत्यु के बाद बी.सी. 931 में इस्राएल दो राष्ट्रों में विभक्त था- इस्राएल नामक उत्तरी देश,यूदा नामक दक्षिणी देश। उत्तरी देश इस्राएल में दस गोत्र होते थे। उसकी राजधानी समारिया थी। दक्षिणी यूदा में दो गोत्र थे, इसकी राजधानी येरुशालेम थी (1 राजा 12:1-24)।
          सुलेमान गैरयहूदी देवताओं के पीछे जा कर जीवन बिताते थे, जो ईश्वर को पसन्द नहीं था। इसलिए नबी अहिया के ज़रिए ईश्वर ने राज्य-विभाजन की चेतावनी दी। इस के अनुसार दस गोत्र वाला उत्तरी देश येरोबोआम को मिलेगा,जो ईश्वर का निश्चय था। किन्तु राजा का ग्रन्थ इस प्रकार साक्ष्य देता है- इस्राएल का प्रभु यह कहता है- मैं सुलेमान के राज्य के दस वंश उसके हाथ से छीन कर तुम्हें देता हूँ। मेरे सेवक दाऊद और उस येरुशालेम के कारण, जिसे इस्राएल के सब वंशों में से चुना था, वह एक ही वंश रख सकता है (1 राजा 11: 31-32)। मैं उसके हाथ से सम्पूर्ण रज्य नहीं छीनूँगा, बल्कि अपने सेवक दाऊद के कारण, जिस से अपने सेवक दाऊद के नाम पर येरुसालेम में सदा एक दीपक जलता रहे ‘ (1 राजा 11:34-36)। नबी अहिया के शब्दों में नीचे दी जाती बातें व्यक्त हो जाती हैं। सुलेमान के बेटे को (दाऊद वंश को तथा उसके ज़रिए युदा गोत्र को) दक्षिणी देश मिलेगा, जिसमें यूदा गोत्र और बेंचमिन गोत्र हैं। येरोबोआम को उत्तरी देश मिलेगा। इसका शासन सावूल को मिला साऊल के समय उत्तर दक्षिणी विभाजन न हुआ था। किन्तु कालान्तर में दो राज्य बन जाने की बात ईश्वर को पहले ही मालूम थी। इसलिए आपने याकूब के ज़रिए भविष्यवाणी करायी कि यूदा गोत्र से एक व्यक्ति सदा होगा, जो ईश्वर की जनता का संचालन करेगा। इस प्रकार बेंचमिन गोत्र का एक व्यक्ति उत्तरी देश इस्राएल का शासन करने के लिए होगा, जो साऊल की वाणी से सूचित है। मगर साऊल ने ईश्वर की संहिता का उल्लंघन किया और उसका राजवंश नष्ट हो गया। (1 समू 13:1-14) सुलेमान और आगे के राजाओं ने ईश्वर की संहिता तोडी और यूदागोत्र को राजा का अभाव हुआ।                                                  

     शर्तों से युक्त प्रतिज्ञा

    ईश्वर जो भी प्रतिज्ञा देते हैं, उसके पूर्ण होने के लिए अमुक शर्त भी पेश करते हैं- उनमें एक है- संहिता का पालन करना। सीनई विधान से लेकर यह स्पष्ट है। विधि- विवरण ग्रन्थ में मूसा इस बात की बार-बार याद कराते हैं (विधि 4:1-4; 15-20; 5:16-21; 6:10-15)। याकूब ने जो कुछ यूदा के बारे में कहा और समूएल ने साऊल के बारे में कहा, दोनों शर्तो संहित वायदे थे। इस्राएल के आगे का इतिहास हमं पढाता है कि आज्ञाभंग ने नाश की ओर पहुँचाया। बाबूली प्रवास इसका ज्वलन्त उदाहरण है। बाबूली प्रवास के साथ इस्राएल में राजशासन का सदा के लिए अन्त हुआ। (2 राजा 25:1-17; यिरमि 52:3-11) ।
      दाऊद की गद्दी पर शासन करने वाले राज-शासन और राजा के बारे में नयी दृष्टि से नये नियमों को बनाते थे। यह एक लौकिक राष्ट्र नहीं। जब स्वर्गदूत गब्रियेल ने मरियम को सुसमाचार सुनाया तो यह नयी दृष्टि प्रकट हुई (लूकस 1:32-35)। दाऊद की गद्दी पर हमेशा के लिए शासन करने के लिए ईसा आ गये। उसके देश का अन्त नहीं। मगर उनका देश लौकिक नहीं (योहन 18:36)। इस्राएल के राजाओं को ईश्वर की धार्मिकता (मिष्पात) लोगों को देनी चाहिए, ईश्वर के रास्ते पर उन्हें ले जाना चाहिए। मगर उत्तर और दक्षिण के राजाओं ने इसमें पराजय खायी। वहाँ रास्ता, सत्य और जीवन (योहन 14:6-9) हो कर पिता की ओर मनुष्यवर्ग का संचालन करने वाली रोशनी हो (योहन 1:5-8) कर ईसा आ गये। याकूब ने यूदा को जो भविष्यवाणी परक वादा दिया, वह ईसा मसीह में पूरा हो गया ।

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