बाईबिल की शंकाये,,,
निर्गमन 16 तथा गणना 11 में वर्णित घटनाएं प्रकट रूप से एक जैसी लगती हैं । मगर सूक्ष्म रूप से देखें तो मालूम होता है कि दोनों की पृष्टभूमियाँ अलग हैं, लक्ष्य भी अलग हैं । अत: ईश्वर की प्रतिक्रियायें भी अलग हैं।
निर्गमन 16 की पृष्टभूमि इस प्रकार है- इस्राएलियों के मिश्र से रवाना हुए दो महीने और पन्द्रह दिन बीते । अब वे सीन के उजाड प्रदेश में पहुँच चुके हैं । यहाँ तक आने पर उनके सारे भोजन चूक चुके । इस सन्दर्भ में वे मूसा के खिलाफ, भुनभुनाने लगे । आप हम को मरुभूमि में इसलिए ले आये हैं कि हम सब भूखों मर जायें (निर्म 16:3)। लोगों की शिकायत सून कर ईश्वर ने मूसा से कहा: ” मैं तुम लोगों के लिए आकाश से रोटी बरसाऊँगा” (निर्ग 16:4)।भूखी जनता को ईश्वर यहाँ रोटी देते हैं । मगर मूसा को लोगों की प्रार्थना अच्छी नहीं लगी,उनकी प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट है, तुम लोगों ने हमारे विरुद्ध नहीं, बल्कि प्रभु के विरुद्ध भुनभुनाया है (निर्म 16:8)। मगर ईश्वर ने मूसा से कहा, तुम उनसे यह कहना-शाम को तुम लोग मांस खा सकोगे, और सुबह इच्छा-भर रोटी । तब तुम जान जाओगे कि मैं, प्रभु, तुम लोगों का ईश्वर हूँ (निर्ग 16:12)। ईश्वर लोगों की बातें भुनभुनाहट नहीं मानी, केवल शिकायत समझी । रोटी के बदले मांस भी देने का वादा किया। जो चमत्कारी ढंग से उन्हें खिलाते हैं, उन्हें लोग अपने ईश्वर के रूप में पहचानेंगे। शाम की वेला में बटेरों का झुण्ड उडता हुआ आया । सबेरे हर एक को एक एक ओमर रोटी मिली (ओमर एक एफा का दसवाँ हिस्सा है ) एक एक 45 लिटर है । अत: उन्हें एक-एक को 4 1/2 लिटर रोटी मिली । निर्गमन 16 के वर्णन के अनुसार इस्राएली जनता को मुन्ना के साथ बटेरों को भी मिला । इस्रीएली चालीस वर्ष तक, बसने योग्य भूमि पहुँचते तक मन्ना खाते रहे (निर्गमन 16:36) ।
गणना ग्रन्थ 11-वें अध्याय में लोग मांस के लिए भुनभुनाते थे । ” उनके साथ चलने वाले छोटे लोग स्वादिष्ट भोजन के लिए लालायित हो उठे और इस्राएली भी विलाप करने लगे । उन्होंने यह कहा; ‘कौन हमें खाने के लिए मांस देगा? हाय ! हमें याद आता है, कि हम मिश्र में मुफ्त मछली खाते थे साथ ही खीरा, तरबूज़ , गन्दना, प्याज औंर लहसून । अब तो हम भूखों मर रहे हैं – हमें कुछ भी नहीं मिलता । मन्ना के सिवा हमें और कुछ दिखाई नहीं देता” (कुछ बातें स्पष्ट होती हे)-
मिश्र से इस्राएलियों के साथ जो गैरइस्राएली होते थे, (निर्ग 12:38), उनके प्रभाव से वे शिकायत करने लगे । हर इस्राएली परिवार अपने अपने तम्बू के द्वार पर बैठे विलाप करते थे, पवित्र ग्रन्थ के रचयिता ने साक्ष्य दिया (गणना 11:10) । प्रभु की क्रोधाग्नि भटक उठी, मूसा को बुरा लगा । ईश्वर ने जो दायित्व मुझे दिया, वह अत्यन्त भारी है, वे थाम नहीं सकते ; मूसा शिकायत करते हें (गणना 11:12-25) ।
मूसा को नौकरी में मदद देने के लिए ईश्वर ने 70 नेताओं को दिया (गणना 11:16-18) । मगर करीब 12 लाख लोगों को एक महीने तक मांस देने में ईश्वर समर्थ हैं? मूसा ने शंका की (गणना 11: 19-21) । प्रभु ने मूसा से कहा: क्या तुममें इतनी भी शक्ति नहीं है कि वह ऐसा कर सके? तुम स्वयं देखोगे कि मैं जो कह रहा हूँ, वह साथक होगा नहीं (गणना 11 :23) । वे उनका मांस पूरा खा भी नहीं पाये थे कि प्रभु का क्रोध लोगों पर भड़क उठा और प्रभु ने उन लोगों पर एक भारी व्याधि भेज़ दी । इसलिए उस स्थान का नाम किब्रोत-हतावा पड़ गया, क्योंकि वहीं उन लोगों को दफ़नाया गया, जो स्वादिष्ट भोजन के लिए लालायित हो उठे थे । लोग किब्रोत हतावा से आगे चल कर हसेरोत पहुँचे और हसेरोत में ठहर गये (गणना 11:33-35) ।
इस्राएलियों की अनुसरणहीनता, लालच ओर नाइनसाफ़ी यहाँ नज़र आती है । मरुभूमि यात्रा के दूसरे साल में गणना 11-वें अध्याय की घटनाएँ होती हें । निर्गमन 16-वीं की घटना निर्गमन के दूसरे महीने की बात है । निर्गमन की वेला में ईश्वर ने जो कुछ किया, वह लोगों ने देखा हे । मिश्र देश की 10 आफत्तियाँ, लालसागर, को बाँट कर उन्हें सुरक्षित इलाके में पहुँचाया, फिराऊन की सेना सागर में डूब मरी, मन्ना देकर ईश्वर ने उन्हें पाला, सबकुछ उन्हें मालूम है, फिर भी वे कहते: हम भूखों मर रहे है (गणना 11:6) । वह कृतघ्नता की चरमसीमा है । लालच के कारण उन्होंने दिन-रात और अगले दिन भी बटेरों को जमाया । फिर आगे चल कर इस्तेमाल करने के लिए मांस सुखा कर रखने का प्रयास किया । गणना 11 :33 वर्णित भारी व्याधि शायद भोजन जन्य विषबाधा हो सकती हे ।
ईश्वर उन्हें दण्ड देते हैं; उसके कारणों को इस प्रकार सूचित कर सकते हें ।
1. प्रभु के कर्मों को वे समझते नहीं । कई निशानियाँ से उनके साथ उनके लिए वे टिकेंगे, इसका प्रमाण भी दिया है ।
2. मेरी जनता की दुहाई सुन कर उन्हें बचाने के लिए मैं उतर आया (निर्ग 3:7), ईश्वर की यह प्रतिज्ञा मूसा द्वारा जनता को मिली थी (निर्ग 3:15) । वे ईश्वर की बातों पर विश्वास नहीं करते ।
3. गैर इसाइयों के प्रभाव से वे लालची हो उठे ।
4 . 78-वें स्तोत्र में इस घटना के बारे में इस प्रकार ब्योरा है: वे मरुभूमि में सर्वोच्च ईश्वर के विरुद्ध विद्रोह करते रहे । उन्होंने अपनी रुचि का भोजन माँगा और इस प्रकार ईश्वर की परीक्षा ली (स्तोत्र 78:17-18) ।
हमारी ज़रूरतों की पूर्ति ईश्वर ही करते हैं । जो कुछ ईंश्वरदत्त हैं, उनसे तृप्त हुए बिना लालच को तृप्त करने उतर आते हैं तो नतीजा नाशकारी होगा । गणना 11 हमें पढाता है कि लालच के बिन से नाश अंकुरित होतां है !
मिश्र से निकलते वक्त जो भोजन सामग्रियाँ बटोर कर रखी थीं, वे चूक गयीं तो लोग दु:खी और चिन्तित हुए, तब ईश्वर उनकी -परेशानी पर तरस खा कर मदद करते हैं -यह घटना निर्ग 16 -वें अध्याय में वर्णित हैं। भूखे की दुहाई ईश्वर सुनते हैं । तब वह जो भी कहे, चाहे वह उलाहना क्यों न हो, ईश्वर उसकी पपदतबर्वाह नहीं करते । मगर गणना 11 का माहौल बिलकुल भिन्न है । इसलिए यह कहना मुश्किल है-कि ईश्वर स्वच्छन्द ढंग से काम करते हें । वे करुणामय और न्याय प्रिय हैं ।
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