Miraculous power of prayer ,,,

Power of Pray

प्रार्थना की चमत्कारी शक्ति,,, 


   ईश्वर से एकजुट रहने और पवित्र जीवन बिताने के लिए,तथा नित्य जीवन पाने के लिए मनुष्य सदा प्रार्थना के द्वारा प्रयास कर रहे हैं। प्रार्थना सृष्टि और सृष्टिक्रता के बीच का संवाद मात्र नहीं। ईश्वर के सामने चुप रहना,मनन करना,आध्यात्मिक गीत गाना, भाषण सुनना आध्यात्मिक ग्रन्थ पढना,प्रार्थना दाल में भाग लेना आदि प्रार्थना के विभिन्न पहलू हैं। ऐसा महान राष्ट्र कहां है,जिसके देवता उसके इतने निकट हैं,जितना हमारा प्रभु-ईश्वर हमारे निकट तब होता है,जब-जब हम उसकी दुहाई देते हैं? (विधि 4:7)।
        ईश्वर की योजनाएँ और करनियाँ अक्सर मनुष्य को अग्राह्य होकर निगूढ रहती है प्रभु यह कहता है – तुम लोगों के विचार मेरे विचार नहीं है और तुम लोगों के मार्ग मेरे मार्ग नही है। जिस तरह आकाश पृथ्वी के ऊपर बहुत ऊँचा है,उसी तरह मेरे मार्ग तुम्हारे मार्गों से ऊँचे है (इसा 55: 8-9)। प्रार्थना के ज़रिए जो ईश्वर से सदा जुडा हुआ है,वह ईश्वरीय योजना के अनुसार कृपायें और आवश्यकताओं की पूर्ति पाता है। तुम्हारें माँगने से पहले ही तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें किन् किन चीज़ों की ज़र‌ुरत है (मत्ती 6:8)। ईश्वर के नाम पर हम जो भी सत्कर्म प्रार्थना है। आप जो भी कहें या करें,वह सब प्रभु ईसा के नाम पर किया करें। आप लोग उन्हीं के द्वारा पिता-परमेश्वर को धन्यवाद देते रहें (कलो 3:17)। विश्वास,विनम्रता, ईश्वर भय, और अनुताप युक्त ह्रदय प्रार्थना करने वालों को हो। 
    1912 में शारीर विज्ञान के लिए नोबल से पुरस्कृत फ्रान्सीसि डाँक्टर थे-अलक्सिस करील। यद्यपि आपने ईसाई होकर जन्म लिया,किन्तु वे अविश्वासी हो कर पले। 1903 में फ्रान्स के लुर्द की और चंगाई के लिए रोगियों को एक रेलगाडी में ले जा रहे थे,उनमे क्षयरोग से परेशान एक युवती थी – मेरी बेय्ली। उसके साथ जाने के लिए डाँक्टर करील तैयार हुए। वहाँ से चमत्कारों की खबरें आती थी,क्या वे ठीक हैं? वे यह जानना चाहते थे। यदि उसे चंगाई मिले तो उन्होंने मन में वादा किया कि वे ईश्वर में विश्वास करेंगें। भक्तिपूर्ण और प्रार्थनामुखरित वातावरण में पवित्र माता की ग्रोटो के पास छोटा-सा तालाब था,वहाँ नहा कर चंगाई पाने के लिए रोगी बारी बारी से खडे हो जाते थे। करील भी उनके साथ थे। बेय्ली को पानी में उतारना मुश्किल था,अत: उसे एक पलंग पर लिटा कर उसके फूले पेट और घावों पर पानी ऊँडल दिया गया। तुरन्त उसके शरीर पर परिवर्तन प्रकट हुआ,जिसे डाँक्टर करील ने देखा। उसका पेट कम हो गया,चोटें भर गयीं,वह साधारण हालत में लौटी। करील ने देख कर विश्वास किया,तीस सालों के बाद 1938 में फिर वे कैथलिक विश्वासी हो गये।
People pray
    करील ने अपनी पुस्तक ‘प्रार्थना’ में लिखी – मनुष्य सबसे ऊर्ज्जा अपना सकते हैं,वह है,प्रार्थना। रेडियम की भाँति वह चमकेगी,असाधारण शक्ति उससे फुटेगी। ईश्वर की अनन्तशक्ति मनुष्य की सीमित शक्ति को प्रार्थना के ज़रिए बढाती है। दुनिया भर में जो ईश्वररीय शक्ति  फैली है,प्रार्थना   उस शक्ति से मनुष्य को मिलती है। धर्मी की प्रार्थना शक्त और फलदायक है ( याकूब 5:16 )।
              नेप्पोलियन बोणप्पार्ट फ्रान्स का सम्राट थे,एक दिन मामूली कैंप-सन्दर्शन के समय एक तम्बू में उन्होंने रोशनी देखी। उन्होंने पास जा कर देखा – एक सैनिक छोटी-सी रोशनी के सामने घुटनों के बल पर प्रार्थना करता था। सम्राट उसे वैयक्तिक ढंग से जानते थे।  
   अगले दिन नेप्पोलियन ने देखा कि पिछले रात में जिसे प्रार्थना करते हुए देखा,वह युद्ध क्षेत्र में सिंह की भाँति लड रहा है। सम्राट ने उससे कहा: तुम्हें वह शक्ति कहाँ से मिली,यह मुझे मालूम है। आज ले तुम मेरा सेवक होगे। जो मुझे बल प्रदान करते है मैं उसकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ (फिलि 4:13)।
             सम्राट ने उसका जीवन-रहस्य समझ लिया है,यह जान कर वह सैनिक विस्मित हुआ। उसने कहा कि यदि मैं प्रार्थना नहीं किया करता तो आपके सैनिकों में सबसे बडा डरपोक होता। प्रार्थना करने वालों को ईश्वर से शक्ति और धैर्य मिलता है,उसे मालूम था। ईश्वर ने हमें भीरुता का नहीं,बल्कि सामर्थ्य; प्रेम तथा आत्मसंमय का मनोभाव प्रदान किया (2 तिमथी 1:7)।
            अपनी दुष्टता के कारण निनवे निवासियों पर ईश्वर नाशकारी दण्ड भेजेंगे,योना नबी के ज़रीए ईश्वर ने उन्हें बताया तो लोगों ने उन शब्दों पर आस्था रखी और उपवास के साथ प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुन कर ईश्वर ने तरस होकर उन्हें दण्ड से बचाया (योना 3:10)।
              ईसा ने क्रूस पर चढाये जाने के बाद,मृत्यु के पहले एक मध्यस्थ प्रार्थना पिता ईश्वर के सामने पेश की। ‘ पिता उन्हें क्षमा कर,क्योंकि ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं (लूकस 23:34)। ईसा के क्रूसी मरण से सभी मनुष्यों को स्थाई मुक्ति देने का वादा किया था,ईसा अपनी मध्यस्थ प्रार्थना के ज़रीए वह मुक्ति पापियों को भी दिलवाते हैं। पापियों की प्रार्थना ईश्वर के पास पहुँचने की संभावना कम है,अत: इस दुनिया में विशुद्धि में जीने वाले जो मध्यस्थ प्रार्थना करते हैं,वह जिन्दा व मरी तथा खोयी आत्माओं को भी मुक्ति दे,इसे संभव होने की कृपा खुद ईश्वर देते हैं। जिसने मुझे भेजा,उसकी इच्छा,यह है कि जिन्हें उसने मुझे सौंपा है,मैं उनमें से एक का भी सर्वनाश न होने दूँ, बल्कि उन सबों को अन्तिम दिन पुनर्जीवित कर दुँ (योहन 6:39)।
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 क्यों हमारी प्रार्थना ईश्वर तक नहीं पहुँचती? बाधक तत्व कौन हैं? हम ज़रा जानें।
       1. पाप की गुलामी में जीते व्यक्ति की प्रार्थना ईश्वर के पास नहीं पहुँचती। तुम्हारे अधर्म ने तुम को ईश्वर से दूर किया,तुम्हारे पापों ने ईश्वर को तुम से विमुख कर दिया;इसलिए वह तुम्हारी नहीं सुनता (इसा 59:2)। पापमुक्ति के लिए पापों की घोषणा करें, पश्चात्ताप करें और ईश्वर के पास लौट जाएँ । यह ईश्वर का आदेश है । आप लोग पश्चात्ताप करें और ईश्वर के पास लौट आयें, जिससे आप के पाप मिट जायें‘ ( प्रे.च, 3:19)।
     2. विश्वास की कमी के कारण प्रार्थना ईश्वर के साम्ने नहीं पहुँचती । इंसा ने कहा, मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ, यदि तुम्हें विस्वास हो और तुम सन्देह न करो, तो तुम न केवल वह करोगे,जो मैं अंजीर के पेड के साथ कर चुका हुँ, बल्कि यदि तुम इस पहाड से कहो उठ, समुद्र में . गिर जा, वे बैसा ही हौ जायेगा । और जो कुछ तुम विश्वास के साथ प्रार्थना में माँगोगे, वह तुम्हें मिल जायेगा (मत्ती 21:21-22) ।
       3. यदि किसी को दूसरों के प्रति घृणा या बदले का भाव हो तो उस व्यक्ति की प्रार्थना ईश्वर के यहाँ नहीं पहुँचेगी । जब तुम प्रार्थना के लिए खडे हो और तुम्हें किसी से कोई शिकायत हो तो क्षमा का दो, जिससे तुम्हारा स्वर्गिक पिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा कर दे’ (मारकुस 11:25-26) ! प्यार के विरुध्द कोई काम ईश्वर को स्वीकार्य नहीं, घृणा में रहनेवाला रोगावस्था में होगा ।
   4. हमारी कुछ प्रार्थनाओं को जवाब नहीं मिलता है, कारण है कि ईश्वर की योजना हमारे प्रति अलग हैं अथवा उसकी पूर्ति फे लिए समय चाहिए । क्रूस पर पडे हुए ईसा ने प्रार्थना की, किन्तु उसको स्वर्ग से जवाब नहीं मिला ।
“मेरे पिता! यदि हो सके तो यह प्याला मुझसे टल जाये । फिर भी मेरी नहीं, बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी हो” (मत्ती 26:39) । अत: किसी प्रार्थना को ज़वाब नहीँ मिले तो ईश्वर की चुप्पी को जवाब समझना है । कुछ सन्दर्भों में हमारे शुद्धीकरण के तौर पर कष्टताओं और दु:खों के पथ से ईश्वर हमें चलायेंगे, तब हम कष्टताआँ से मुक्ति के लिए नहीं, बल्कि उसे सहने की शक्ति के लिए प्रार्थना करें । जब हम दु:खों को सहर्ष सहते हैं तब हमारी आध्यात्मिक शक्ति बढती हैं और हमें ईश्वर की कृपा मिलती है । आप ईश्वर की महिमामय शक्ति से बल पा कर सदा दृढ बने रहेंगे, सबकुछ आनन्द के साथ सह सकेंगे ओर पिता को धन्यवाद देंगे (कलो 1:11-12) ।
       5. हश्य से जो प्रार्थना नहीं पैदा होती, यह निष्फल  रहती हैं । दूसरों के ध्यान को आकर्षित करने के लिए खूबसूरत प्रार्थना करने की रीति भी निष्फल है । ये लोग केवल शब्दों द्वारा मेरे पास आते हैं । इनके होंठ मेरी महिमा करते हैं, किन्तु इनका ह्रदय मुझ से दूर है । ये दूसरों के आदेश से मुझ पऱ श्रद्धा रखतें हैं । इनकी भक्ति रटाई हुई शिक्षा है (इसा 29:13) । नदी के किनारे लगाया गया पेड पानी में जडें बढा कर प्रतिकूल मौसम में भी फल निकालता है, वैसे हृदय की गहराई से प्रार्थना फूटती है । वह प्रार्थना  मेघमालाआँ को चुभ कर ईश्वर के पास पहुँचती है । वह उन सबों के निकट है, जो उसका नाम लेते हैं, जो सच्चे ह्रदय से उससे विनती करते हैं (स्तोत्र 145: 18) । 
Jesus

    प्रार्थना से ईश्वर से एकाकार हो जाये और शारीरिक चंगाई पाए, मानसिक तनाव दूर हो जाये, आध्यात्मिक शक्ति मिले, भला काम कर पाये, ये सारे काम सफल होते हैं । ईश्वर के पास जाएँ और वह आप के पास आएगा  (याकूब 4:8) । प्रार्थऩा की शक्ति प्रभाव से हमारे सारे बुरी आदतें और आदत की कमजोरियाँ दूर होती है औऱ हम सत्य, न्याय और धार्मिक मूल्यों के मालिक बन जाते हैं । महत्व इस बात का है कि हम पूर्ण रूप से नयी सृष्टी बन जायें (गली 6:15) ।

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