Holy Trinity – Jesus पवित्र त्रित्व – पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा रूपी त्रिमूर्ति ईश्वर पर आस्था ईसाई विश्वास की मौलिकता है । यहूदी तथा मुसलमान भी ईसाइयों की भाँति एकेश्वर विश्वासी हैँ । मगर ईश्वर त्रित्व है । इस विश्वास के ज़रिए ईसाई विश्वास अन्य धर्मों से भिन्न हो जाता है । एक तीन हो जाता है और तीन मिल कर एक हो जाते हैं, यह ईश्वरीय रहस्य है, इस त्रित्व के बारे में समझना मानवीय सामर्थ्य के परे की बात हे । अत इस रहस्य की व्याख्याताओं में अनेकों को गलती हुई । सागर के तट पर त्रित्व-रहस्य के बारे में अगस्टिन मनन कर रहे थे, तब उन्होंने एक ऐसे बच्चे को देखा, जो छोटा, सा गड्डा तैयार कर सीपि भर कर सागर का पानी लेकर गड्डे में डाल रहा था, अगस्टिन ने उससे इसका कारण पूछा तो जवाब मिला कि मैं सागर के पानी को सुखाना चाहता हूँ । फिर उसने कहा, इस सागर को सुखाने की अपेक्षा प्रयास पूर्ण काम हैँ, आप का मनन-चिन्तन जो कि त्रित्व का रहस्य जानने के लिए है । वह बच्चा बेष बदल कर आया, स्वर्गदूत था, यही कथा है । कहानी की सच्चाई के परे इसकी सूचना मुख्य है कि पवित्र त्रित्त्व मनुष्यबुद्धि के परे एक रहस्य है। मनुष्य बुद्धि का निर्माता और सृष्टिकर्ता त्रिमूर्ति ईश्वर है, अत: ईश्वर की बुद्धि के परे कायम सत्य है ।
पवित्र त्रित्व संबन्धी कलीसिया के विश्वास-तत्व नीचे दिये जाते हैं । ईश्वर पिता है, यह विचार विभित्र धर्मों में मान्यता प्राप्त है । पुराना विधान सबों के सृष्टिकर्ता (विधि 32:6, मला 2:10) की हैसियत और पर विधान के ज़रिए पहले पुत्र इस्राएल का पालक (निर्ग 4:22) की हैसियत पर ईश्वर को पिता बुलाते थे। मगर ईश्वर को पिता बुलाने का मुख्य कारण ईसा द्वारा प्रकट किया गया है । अपने एकमात्र पुत्र ईसा के जन्मदाता की हैसियत से ईश्वर पिता हैं, ईसा ने व्यक्त किया । जब ईश्वर को पिता बुलाते हैं, तब यह न समझना चाहिए कि ईश्वर पुरुष है । स्त्री-पुरुष लिंग-भेदों मानवीय मातृत्व-पितृत्व भेदों के परे ईश्वर पिता है, इस संझा को मानें। (ccc 219)।
2. अपने दु:ख-भोग की पिछली रात को पिता और पुत्र के साथ कर्मरत और एक व्यक्ति (paraclete) के बारे में ईसा ने प्रकट किया (योहन 14’17,26;16:13)। सृष्टि से लेकर हाजिर (उप्तत्ति 1:2) ईश्वर जन के नायकों के जरिए बोलते रहने वाले, पवित्र आत्मा या सहायक (parelete) है । जब ईसा ने इस तत्व को प्रकट किया तब त्रिमूर्ति ईश्वर का रहस्य खुल गया । आदिम कलीसिया अपने विश्वास की घोषणा त्रिमूर्ति ईश्वर के नाम पर किया करती थी (मत्ती 28 : 19) । प्रार्थनाएँ पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर शुरू करती थी । ‘नाम पर’ के बदले ‘नामों पर‘ का प्रयोग ‘ नहीं किया गया । पवित्र त्रिमूर्ति ईश्वर एकमात्र ईश्वर है, यह विश्वास प्रस्तुत एक वचन-प्रयोग से स्पष्ट होता है । सन्त पौलुस के लेख के आराधना-क्रम संबन्धी वर्णन में आशीर्वाद त्रित्वेक-ईश्वर-स्तूतियाँ हैं । हमारे प्रभु ईसा मसीह की कृपा, पिता ईश्वर का प्यार और पवित्र आत्मा का सहवास. . . । सन् पचास के आसपास लिखे गये इन लेखों से हमें आदिम कलीसिया में प्रचलित त्रित्वेक ईश्वर पर अटल आस्था का पता चलता है । अत: त्रित्वेक ईश्वर किसी ईंश्वर-शास्त्री का अथवा विश्वसभा का आविष्कार नहीं । यह स्पष्ट है।
3. पवित्र त्रित्व में सत्तापरक मेल-मिलाप है । (homoousia) । तोलेदो विश्वसभा (614) की व्याख्या के अनुसार जैसे पिता मौजूद हैं, वैसे पुत्र भी मौजूद है (Ds 50:26) । पिता, पुत्र, और पवित्र आत्मा एक ही सत्ता है, वे तीन ईश्वर नहीं, एक ही ईश्वर हैं । कोन्स्टांटिनोप्पिल विश्वसभा ने इसे सूचित करने के लिए एक प्रतीक का प्रयोग किया है- प्रकाश से उदृभूत प्रकाश । एक जलती बत्ती से दूसरी बंत्ती जलायी जाती है, दोनों सत्तापरक जो मेल-मिलाप है, वह यहाँ सूचित है ।
एक ही सत्ता (homoousia) के बदले एक जैसी सत्ता (homoiousia) है त्रियेक ईश्वर, ऐसे तर्क पेश करने वाले तीन व्यक्तियों की भाँति त्रित्व के साथ रहता चौथा व्यक्ति हैं, ईश्वरीय सत्ता (Quaternity) इस प्रकार बताने वाले भी कलीसिया में होते थे । मगर विभिन्न विश्वसभाओं ने इन्हें पाखण्डी बुलाया है ।
4..सत्तापरक मेल-मिलाप होने के बावजूद भी पवित्र त्रित्व के पिता पुत्र और पवित्र आत्मा तीन विभित्र व्यक्ति हैं । सन्त ग्रिगरी नासियान्सन का उद्धरण करके चौधी लाटरन विश्वसभा (1215) इसके बारे में जो सलाह दे चुकी है, वह ध्यातव्य है । पिता एक व्यक्ति (Alius) है । पुत्र दूसरा व्यक्ति है । पवित्र आत्मा और एक व्यक्ति है । मगर वे विभिन्न सच्चाइयाँ (Aliud) नहीं । इस विश्वसभा ने पढाया कि तीनों व्यक्तियों में फरक उनके उदृभव में होती फ़रक है । इसी विश्वसभा ने पढाया, ’पिता पुत्र को जन्म देता है । पुत्र तो जन्म कराया गया है; पवित्र आत्मा तो पिता से निकला है (Ds 804) । त्रित्व के तीन व्यक्तियों (hypostasis) में फरक नहीं, यह कहना पाखण्डता है ।
पवित्र त्रित्व,,,,,Holy Trinity – Jesus
5. पवित्र त्रित्व के तीन व्यक्तियों में पूर्ण मेल-मिलाप है (perichoresis) यह भी कलीसिया का विश्वास सत्य है । त्रित्वेक ईश्वर की वैयक्तिक फरक उनके मेल-मिलाप का सूचन है । पिता और पुत्र के बीच की फरक उनका संबन्ध है । पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा उनके आपसी संबन्ध के कारण विभिन्न हैं । जैसे फ्लोरेन्स विश्वसभा पढाती है, वैसे पिता पूर्णत: पुत्र और पवित्र आत्मा में, पुत्र पूर्णत: पिता और पवित्र आत्मा में, पवित्र आत्मा पूर्णत: पिता और पुत्र में समा हुए है, ऐसा अतुल्य एकता त्रित्व में है (DS 1331) । इस मेल-मिलाप को पेरिकोरेसिस (ऐसी मिली-जुली अवस्था जिनके बीच में . ज़रा भी जगह नहीं) ,शब्द से सूचित किया जाता है ।
6. पवित्र आत्मा पिता से निकला हुआ है, कोन्स्टान्टिनोप्पिल विश्वसभा (381) ने पढाया । मगर 685 में तोलेदों में जो विश्वसमा हुई उसने पढाया कि पवित्र आत्मा पिता ओंर पुत्र से (filioque) निकला है । पूर्वी समाजों के पिताओं ने इसका विरोध किया । एक विश्वसभा की सीख को एक प्रादेशिक सभा द्वारा सुधारना ठीक नहीं है- उन्होंने तर्क पेश किया । पूर्वी और पश्चिमी त्रित्व संबन्धी दृष्टिकोण में यह फरक अब भी है । सन् 447 में पोप लेयो प्रथम ने पढाया था कि पवित्र आत्मा पिता और पुत्र से निकला मुभा है । 1439 के फ्लोरेन्स विश्वसभा ने भी ऐसे पढाया था । पिता और पुत्र से निकलता, पिता और पुत्र के चारित्रिक प्रकृति (Nature) तथा अस्तित्व (Subsistence) में एक ही समय भाग लेने वाला है, पवित्र आत्मा । इस विश्वसभा ने पढाया ।
पूर्वी परंपरा के अनुसार ‘पवित्र आत्मा पिता से पुत्र के ज़रिए प्रकट हुआ है’ ! यह सुसमाचार की परंपरा के अनुसार ठीक है (योहन 15:26) । सूक्ष्म आलोचना में दोनॉ में ज्यादा फरक नहीं। प्रथम स्यान पर पूर्वी परंपरा द्वारा जोर लगाया गया है । जबकि पाश्चात्य परंपरा पिता-पुत्र के सत्तापरक मेल-मिलाप पर जोर लगा कर मत पेश करती है । कोन्स्टान्टिनोप्पिल विश्वस ने कहा कि पिता और पुत्र की भाँति पवित्र आत्मा भी आराध्य है। अत: पूर्वी और पश्चिमी रवैयों को आपसी पूरक मान सकते हैं। एक ही सच के दो दृष्टियों से पेश किया गया है, अत: यह आपसी विरोधी नहीं, मगर आपसी आदर के साथ इसे ले लें।
7. यूनानी समाज के पिता सन्त ग्रिगरी नसियानसन, नेसा के सन्त ग्रिगरी और सन्त बेशिल ने त्रित्व संबन्धी शास्त्र के ताने-बाने तेयार किये । ये तीनों ‘कप्पदोसिया के पिता ’ नाम से जाने जाते हैं।
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