स्त्रियों और बच्चों को बेसहारा बनाना ठीक हैं ?
बाबुली गुलामी से इस्राएलियों को मुक्ति तब मिली जब B.C.538 में फारसी लोगों ने बाबुलियों को हराया और सेरस शासक बन गये। गुलाम रहे इस्राएली येरुसालेम वापस जा सके, तहस-नहस पडे येरुसालेम मन्दिर का पुनर्निर्माण करने की अनुमति सैरस द्वारा दी गयी। पुनर्निमाण कार्यों का नेतृत्व एज्रा़ और नेहमिया ने किया। इसके मुख्य अंश उनके नाम वाले- एज्रा नेहमिया ग्रन्थों में देख सकते हैं।
50 सालों में यहूदियों के बीच काफ़ी परिर्वन आ चुका था। खास कर सामाजिक तौर पर। उसके बारे में एज्रा़ ग्रन्थ जो कुछ कहता है, उसे ध्यान -से सुनें: इस्राएली, याजक और लेवी देश के शेष लोगों से, अर्थात कनानी, हित्ती, परिज्जी, यबूसी, अम्मोनी, मोआबी, मिश्री और अमीरी लोगों के घृणित रीति-रिवाज़ो से अलग नहीं रहे। उन्होंने उनकी पुत्रियों के साथ अपना तथा अपने पुत्रों का विवाह किया, जिससे पवित्र जाति का इस देश के लोगों से मिश्रण हो गया है (एज्रा़ 9:1-2) । गैर यहूदी स्त्रियों को पत्नियों के रूप में स्वीकारने की रीति बाबूली गुलामी के पहले हुई थी। किन्तु गुलामी के साथ यह अवस्था ज्यादा बिगड गयी।
यहूदी जनता की हालत समझ कर एज्रा़ मन्दिर की ज़मीन पर पडे रह कर रोये और उन्होंने अपने पापों की घोषणा की, फिर प्रार्थना की तो स्त्री, पुरुष सहित भारी भीड जमा हुई। वे भी बडे शोक के साथ रोये। एलाम के गोत्र के यहियेल का पुत्र पक्कानिया ने पुत्र से कहा, हमने अपने ईश्वर के प्रति बेईमानी की, देश की अन्य स्त्रियों से शादी की। फिर भी इस्राएल को आशा का रास्ता है। आप तथा ईश्वर की संहिता से भयभीत व्यक्ति आप और अपने ईश्वर के आदेशों से भयभीत जैसे अनुशासन दे चुके है, वैसे हम कसम खाएँ कि इन पत्नियों और सन्तानों को छोडेंगे। जो ईश्वरीय संहिता बताती है, हम उसका पालन करेंगे (एज्रा़ 10:1-3)। इस आज्ञा के अनुसार उन्होंने पत्नियों और सन्तानों को छोड दिया (10:44)। नये विधान के तहत यह काम अतिक्रूर कारवाई लगेगा। सहज रूप से हम पूछेंगे कि पत्नियों और सन्तानों की उपेक्षा करना ईश्वर से अनुमत कार्य है?
बाबूली विप्रवास तथा उसके बाद धीरे-धीरे अपनी आबादी घट रही थी तो नबियों की भविष्यवाणी के तहत इस्राएलियों ने सोचा कि अपनी बेईमानी का दण्ड मिल रहा है। लोग मूर्तिपूजा की ओर झुक गये, इसका मुख्य कारण गैर यहूदी स्त्रियों के साथ जो शादी संपत्र हुई, वह था। राजा सुलेमान की पराजय का कारण गेर यहूदी स्त्रियों की शादी के कारण उत्पत्र मूर्तिपूजा था। समाज के शुद्धीकरण के लिए एज्रा़ ने मुख्य कार्य यह जाना कि विवाह रूपी अशुद्धि को जड से उखाडना। उनके संबन्ध में ईश्वर के प्रति बेईमानी तलाक से ज्यादा बडा अपराध था, जो गंभीर भी था ।
एज्रा़ दसवें अध्याय के हिसाब के अनुसार केवल 113 व्यक्तियों ने अन्य स्त्रियों से शादी की थी। इस्त्राएलियों ने ईश्वर के साथ जो विधान किया था, उसे एज्रा़ और अन्य नेताओं ने गंभीर माना। इस विधान के अनुसार निर्ग 34: 11-16 में तथा विधि 7:1-5 में गैर यहूदी स्त्रियों का विवाह करना मना था। इस्राएल इतिहास में कई मिश्रविवाह हुए थे, मगर वे धर्मांतरित स्त्रियों के साथ थे। रूत, राहाब और मूसा की पत्नी इसके उदाहरण हैं ।
एज्रा़ और नेताओं ने निर्देश देकर जिसे अमल में पहुँचाया था, उसका एतराज करने वाले भी इस्राएल में थे।’केवल असाएल के पुत्र योनातान और तिकवा के पुत्र यहज़या ने इसका विरोध किया और मशुल्लाम एवं लेवी शब्बतय ने उनका समर्थन किया ‘ (एज्रा़ 10:15)। इससे स्पष्ट है कि एज्रा़ के कर्म के विरोधी कुछ व्यक्ति अवश्य थे।
निर्गमन ग्रन्थ और विधि विवरण में ईश्वर ने गैर यहूदी स्त्रियों से शादी न करने का आदेश दिया था। मगर शादी के बाद परिवार समेत रहने वालों के कार्य में कोई आदेश न दिया गया है। यही नहीं वे तलाक के खिलाफ थे (मलआकी 2:16)। नबी के इस वचन के खिलाफ है, एज्रा़ की यह कारवाई। अनाथों के बारे में पुराना विधान जो हमदर्दी दिखाता था, उसके अनुसार बच्चों की उपेक्षा करना ठीक नहीं। बाबूली गुलामी तथा उसका कारण बनी बेईमानी तथा उसकी ओर ले जाने वाली बात होकर जिसे एज्रा़ तथा नेताओं ने माना,वह मिश्र विवाह इसी प्रकार कठिन कारवाई की ओर ले जाने की प्रेरणा दी होगी। मगर नये विधान के तहत एज्रा़ की कारवाई धार्मिक नहीं।
नये विधान की शिक्षा नीचे दी जाती है- यदि किसी भाई की पत्नी हमारे धर्म में विश्वास नहीं करती और अपने पति के साथ रहने को राजी है, तो वह भाई उसका परित्याग नहीं करे और यदि स्त्री का पति हमारे धर्म में विश्वास नहीं करता और वह अपनी पत्नी के साथ रहने को राजी है तो वह स्त्री अपने पति का परित्याग न करे। क्योंकि विश्वास नहीं करने वाला पति अपनी पत्नी द्वारा पवित्र किया गया है, और विश्वास न करने वाली पत्नी अपनी मसीही पति द्वारा पवित्र की गयी है। नहीं तो आपकी सन्तति दूषित होती; किन्तु अब वह पवित्र ही है। यदि विश्वास नहीं करने वाला साथी अलग हो जाना चाहे तो वह अलग हो जाये। ऐसी स्थिति में विश्वास करने वाला भाई या बहन बाध्य नहीं है । ईश्वर ने आप को शान्ति का जीवन बिताने के लिए बुलाया है। क्या जाने हो सकता है कि वह अपने पति की मुक्ति का कारण बन जाये और पति अपनी पत्नी की मुक्ति का कारण’ (1 कुरि 7:12-16)। मिश्र विवाह के कार्य में भी नये विधान ने पुराने विधान को सुधार किया है। धार्मिक विषय में आखिरी वचन पुराना विधान नही, बल्कि नया विधान है ।
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