Jesus - Sin Atonement

   पाप-प्रायश्चित्त: याद करने लायक तथा भूलने लायक बातें

Jesus - Sin Atonement
       बेक-दुर्घटना में पड कर एक नौजवान के दोनों पैर टूटे, जल्दी ही आपरेशन कराया, वह अस्पताल में शय्यावलंबी पडा हुआ था, उसने कहा, ‘खतरे के वक्त जितनी पीडा सहनी पडी उससे ज्यादा इलाज के वक्त सहनी पडी । कारण क्या था, पूछा गया तो जवाब था कि इलाज चंगा करने के लिए दिया जाता घाव है । खतरा चोट करने के लिए चोट कराना है’ । .
    चालीसा आत्मा और मन के इलाज का समय है। सौख्य पाने के लिए चोट खाने का समय है । यह टूटे संबन्धों कीं हड्डियों को मिला कर, अस्वास्थ्यजनक पाप के विकास को काट कर आध्यात्मिक सौख्य की और यात्रा हैं। ‘वह दु:खियों को दिलासा देता और उनके घावों पर पट्टी बाँधता है’ (स्तोत्र 147:3) ।
   कम से कम, कुछ व्यक्ति सौख्य का समय समझने में पराजित होते हैं । जाने-अनजाने पूरा ध्यान पापों पर देते हैं । फलत: पुण्य, सौख्य, खुशी आदि भूल जाते हैं। चालीसा के दो लक्ष्य हैं- प्रायश्चित्त और पुण्यों की कमाई। अधिकांश लोग चालीसा के वक्त पापों की यादों में फँसे हुए हैं, जो आध्यात्मिक विरोधाभास है। क्योंकि आध्यात्मिकता एक आदमी की कल्पना की सबसे बडी आजादी है।  प्रभु तो आत्मा है और जहाँ प्रभु का आत्मा है, वहाँ स्वतंत्रता है (2 कुरि 3:17) ।

पाप-प्रायश्चित : कुछ याद करने लायक बात

      आध्यात्मिकता पाप को बार-बार याद करना नहीं, बल्कि पाप को भूलना है, घृणा करके छोडना है । पवित्र पाप कबूली के तम्बू में ईसा अपने पवित्र रक्त से जिसे धोकर संशुद्ध बनाते हैं, यह पूर्णत? सन्त हैं । उनके पुत्र ईसा का खून सभी पापों से हमें शुद्ध बनाता है (1 योहन 1:7)
     एक बार पूर्णत: पाप’-कबूली का संस्कार पा लिया तो वह व्यक्ति पूर्ण सन्त है । एक शर्त पर कि वह फिर पाप न करे । एक मायने में सभी व्यक्ति, अल्पकाल के लिए ही सही, सन्त है । पाप-संबन्धी ख्याल एक व्यक्ति को निराशा, और आध्यात्मिक शिथिलता की ओंर ले जाता है तो यह बताना उचित है कि मैं सन्त हूँ नकि मैं पापी हूँ ।
   पाप-कबूली संस्कार पाने के बाद भी एक व्यक्ति को पुराने पापों की याद सताती हें तो इसके तीन कार’ण हैं –
1. ईश्वर विश्वास कीं कमी 2. ईंश्वराश्रय की कमी, ईश्वर-वचन बारे में घारणा की कमी । इसा. 1:8 में ईश्वर उन्हें जवाब देते है:- तुम्हारे पाप सिन्दूर की तरह लाल क्यों न हो, वे हिम की तरह उज्ज्वल हो जायेंगे । वे किरमिज की तरह मटमैले क्यों न हो, वे ऊन की तरह श्वेत हो जायेंगें ।
   कुछ व्यक्ति इस प्रकार सोचते हैं, मैं ने खूब प्रायश्चित्त किया है, इसलिए पापमुक्ति मिली । अपने कर्मों के बल पर वे विशुद्धि कमाना चाहते हें । कुछ पाप ऐसे हैं , जिनके लिए प्रायश्चित्त अधुरा रह जाता हैं और वे निराश हो जायेंगे । ईश्वराश्रय की कमी । ईश्वर इनसे कहते हें… ’डरो मत मैं तुम्हारे साथ हूँ । चिन्ता .मत करो, मैं तुम्हारा ईश्वर हूँ, मैं तुम्हें शक्ति प्रदान कर तुम्हारी सहायता करूँगा; मैं अपने विजयी दाहिने हाथ से तुम्हें संभालूँगा’ (ईसा 41:10) ।
  तीसरे वर्ग के व्यक्ति पापों की याद में दु:खी हो जाते हैं यह ईश्वर-वचन से जुडा हुआ होता हैं । उनका विश्वास हैं कि बाइबिल ईश्वर-वचन हैं । मगर इसको सही चेतना नहीं । वचन की असली धारणा जिन्हें है, वे ही उन्हें जीवन में अमल करते हैं । वचन की जडें फैसलों और कर्मों की ओर फैल जायें । जो पथरीली भूमि में बोया गया है, यह वह हैं, जो वचनं सुनते ही प्रसन्नता से ग्रहण करता हें, परन्तु उसमें जड नहीं है और वह थोडे ही दिन दृढ रहता है । वचन के कारण संकट या अत्याचार आ पडने पर वह तुरन्त विचलित हो जाता है (मत्ती 13:21)। वचन की सही धारणा में आने के लिए प्रभु उन्हें न्योता देते हैं। ईश्वर-उन्हें पापों की यादों का शिकार होने नहीं देते। वह फिर हम पर दया करेगा, हमारे अपराध पैरों तले रौद देगा और हमारे सभी पाप गहरे समुद्र में फेंकेगा (मीकाह 7:19) ।           पाप-प्रायश्चित्त के अनुष्ठान में चन्द बातों की याद करें।

1. हमारे और दुनिया भर के पापों के प्रायश्चित्त के लिए आमरण त्याग करते रहना अपनी मुक्ति का सहायक तत्व है ।
2. एक व्यक्ति का प्रायश्चित्त कर्म, जो बार-बार किया जाता है, पुण्य कमाने के लिए हो ।
3. किये-घरे पाप की याद में निराशा और भय के कारण   प्रायश्चित्त कर्मों को दुहराना स्वस्थ आध्यात्मिकता नहीं । हम ईसा के प्रेम के नष्ट से बचे रहने के लिए  पाप छोडें।
4. ईसा का दु:ख-भोग हमें पापमुक्ति प्नदान करता है । न कि हमारे कर्म ।
5. प्रायश्चित्त कर्म ईसाई जीवन का लक्ष्य नहीं, अनिवार्य मार्गों में एक मात्र है।
  आखिर चालीसा पाप केन्दित आध्यात्मिकता से पुण्य केद्रित आध्यात्मिकता कीं आर चलने का आहवान देता है। ‘आप लोगों पर पाप का कोई अधिकार नहीं रहेगा । अब आप संहिता के नहीं, बल्कि अनुग्रह के अधीन हैं ‘(रोमि 6:14)।

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