Castle Builder Over Injustice - JESUS

   अन्याय के ऊपर महल बनाने वाला

   धिवकार उसे, जो अधर्म के धन से अपना महल और अन्याय से अटरियाँ बनवाता है; जो वेतन दिये बिना अपने पडोसी से काम लेता है (यिरमियाह 22:13) आज हमारे समाज में कई घर टूट चुके हैं या गिर चुके हैं, इसका कारण अन्यायपूर्ण जीवन चर्या है। कई व्यक्तियों का मुख्य विचार-कब्जे में लाना-छीन लेना, अपनाना, एकजुट करना है। इसके लिए कुछ व्यक्ति नीच से नीच मार्ग अपनाते हैं, कुतंत्रों का जाल विछाते हैं। प्रभु ने कहा, मैं उसका बाडा हटाऊँगा और पशु उसमें चरने आयेंगे। मैं उसकी दीवारें ढाऊँगा और लोग उसे पैरों तले रौंदेंगे (इसा    5 : 5) ।
      आग्रा चहारदीवारी के तंग कमरे में बन्दी होकर सम्राट षाजहान का निधन हो गया। अपनी प्यारी पत्नी मुंमतज महल की याद के लिए बनवाये मशहूर ताजमहल को एक बार देखने का अवसर भी उन्हें नहीं मिला। उसके पहले बेटे औरंगजीब ने अपने को राजा घोषित किया तथा पिता षाजहान को बन्दी बनाया। चहारदीवारियाँ, यादगार, मसजिद आदि का वाकायदा निर्माण करके काफी घन उन्होंने गाँवाया, इसलिए देश दुर्बल हो रहा है, यही बेटे का पिता के विरुद्ध आरोप था।
      जब वे राजा बनेंगे तब आस-पास के राज्यों को युद्ध में परास्त करूँगा और अपने देश सुविशाल और समृद्ध बनाऊँगा औरंगजीब ने सोचा। युद्ध हुए, कई एक युद्ध में पराजय खानी पडी और युद्ध करते देश की आर्थिक स्थिति टूट गयी। औरंगजीबके सांम्राज्य का पूर्ण पतन हो गया। उसका अन्त हो गया ।
    आज हमारे समाज के कई घरों में इस के समान घटनाएँ हो रही है। माता-पिता को धोखा देकर या खींचातानी से पुत्र जायदाद हडप लेते हैं: जो अपने माता-पिता की चोरी करता और कहता है- यह पाप नहीं है वह डाकुओं का साथी है (सूक्ति 28:24)। अपने माई-बहनों को भी जिस जायदाद में हक है, उसे छीन लेने वालों को वचन ने चेतावनी दी है- अन्याय की संपत्ति से लाभ नहीं (सूक्ति 10:2)। प्रभु ने काफी संपत्ति और समृद्धि दी, फिर भी लालच के साथ लूट-पाट करने वाले होते है, उनसे प्रभु ने यों कहा है- तुम दण्ड के दिन क्या करोगे? जब विपत्ति दूर से आ पडेगी तुम सहायता के लिए किस के पास दौडोगे? … तुम अपनी संपत्ति कहाँ रखोगे (इसा10:3)। उचित वेतन वाली नौकरी, हाथ भर रुपये आदि मिलने के बावजूद भी घूस लेने को लालायित कुछ व्यक्ति होते हैं; उन्हें ज्यादा से ज्यादा कमाने का मोह है। प्रभु ने उन्हें चेतावनी दी है- रिश्वत देने वाला समझता है कि घूस जादू का पत्थर है.… वह मनुष्य को नित्यनाश के गड्ढे में धकेलता है (सूक्ति 17:8)। अन्याय और ठग से घन कमाने वालों के परिवार औरंगजीब के साम्राज्य की तरह टूट जायेगे।
    कई माता-पिता सन्तानों के लिए घन,घर और नौकरी का बन्दोबस्त करते हैं। मगर परिवार और सन्तानों को सत्नाम मिले, यह विचार अक्सर उन्हें नहीं होता। वचन कहता है- सन्तानों का अभिमान पिता है‘ (सूक्ति 17:6)।मातापिता जो आत्मविश्वास देते हैं, वह आशा होकर, भला कर्म करने की प्रेरणाशक्ति होकर सन्तानों में आ जाएगा। धर्मी सन्मार्ग पर आगे बढता है, धन्य हैं वे पुत्र, जो उसका अनुसरण करते हैं (सूक्ति 20:7)। मगर घूस, कपट, अन्याय और कुकर्म से जो माता-पिता धन कमाते हैं तथा अपनी प्रभुता दिखाते हैं, उनकी संपत्ति का इस्तेमाल करते हुए सन्तानों के मन में अपने माता-पिता के प्रति अन्दर-ही-अन्दर परिहास तथा घृणा होगी। यह सच कई मता-पिता नहीं समझते।
     धोखा और वक्रता में रहने वालों का विचार है कि और कोई मुझे नहीं देखता। मैं क्यों डरूँ। मगर वचन कहता है;पापियों की सभा सन की गठरी जैसी है। उसका अन्त प्रज्वलित आग में होता है (प्रवक्ता 21:10)। हमारे पाप वारदातों के रूप में अपना पीछा करते हैं, यह कई व्यक्तियों को नहीं मालूम है। किसी भी क्षण वह हमें पकड सकती है। आज हम रहस्य में जो पाप करते हैं वह हमारी सन्तानें खुल्लम-खुल्ला करेंगे (2 समू 12:12)। जो भी अन्याय करते-फिरते हैं, उन सबों को तकलीफें और दूटनें होगी। क्योंकि ईश्वर के सामने कोई माँफी नहीं (रोमि 2:8-11)। जो बोता है, सो काटता है। अत्याग्रह, धोखा और वक्रता बोता है तो नित्य नाश, आध्यात्मिक _ मृत्यु का नाश पीछे आएगा। (गला 6:8)।
     आत्मा की रक्षा के विचार के बिना जीते रहे एक अमीर का चित्र लूकस के सुसमाचार 16-वें अध्याय में मिलता है। मृत्यु के बाद नरकाग्नि में पडा तो उसे अपनी करनियों के बारे में सही पता चला (लूकस 16:23)। तब तक देरी हो चुकी थी। ईश्वर की इच्छा है कि उस अमीर की मूर्खता हमें न हो। अत: इस दुनिया में विशुद्धि, ईमानदारी तथा विवेक के साथ जीवन बिता कर ईश्वर के राज्य में अमीर बनने के लिए ईश्वर हमें उपदेश देते हैं (लूकस 12:33)।ईसा के समर्थकों को आत्मा की रक्षा रूपी यथार्थ, ३ धन कमाना चाहिए, वह स्वर्गसोभाग्य ही है (लूकस 10:42)।
     एक दिन इस दुनिया के हमारे प्रतापों का अन्त होगा। इस दुनिया में कुछ भी शाश्वत नहीं। कुछ भी सुस्थिर नहीं।केवल नित्यजीवन कायम रहेगा। आज नहीं तो कल हमें अपनी सारी कमाई छोड कर जाना होगा।जब हम नित्यता की ओर जायेंगे तब स्थाई तत्व नित्य जीवन न कमा पाएँ तो हमारी लौकिक संपत्ति से क्या फायदा है। प्रभु पूछते हैं- मनुष्य को इससे क्या लाभ यदि वह सारा संसार प्राप्त कर ले, लेकिन अपना जीवन ही गँवा दे? अपने जीवन के बदले मनुष्य क्या ही दे सकता है (मत्ती 16:26)।
     हम इस सत्य को जान कर आत्मा की रक्षा के लिए अपने रास्तों को सुधारें। दुनिया की संपत्ति, कीर्ति तथा आदर में हमारा मन न अटक जाये। हमारा लक्ष्य केवल स्वर्ग और नित्यरक्षा हो। जब हम से यह लक्ष्य छूट जाता है तब हम पाप के बन्धन में आते हैं। अत: विनम्र भाव से हम उनके क्रूस के तले खडे होकर इस प्रकार विनती करें! ईसा ! मैं अपने आडंबर, वक्रता, धोखा तथा लालच के बाहरी वस्त्र खोल कर उसे क्रूस के तले सौंपें। हे प्रभु! इस बाहरी वस्त्र को पुन: न धारण करने लायक हमारी रक्षा करें। इस प्रकार हम अपने को संशुद्ध बनाते है, नये जीवन की शुरूआत करते हैं; तो हमारा मन चमतके आसमान की भाँति होगा। वह खुशी, संतृप्ति और आनन्द भर जायेंगे। इस बडी ईश्वर कृपा के लिए हम प्रार्थना करें और माँगें।

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