वचन का पालन करें- Jesus

 

वचन का पालन करें- Jesus


हम वचन का पालन करें,— Jesus

   आप अपने को धोखा नहीं दें। वचन के श्रोता ही नहीं, उसके पालनकर्ता भी बनें (याकूब 1:22)। यह एक ऐसा वचन है, जो सुसमाचार का जीवन हम पर बहाता है। हमें जल्दी ही इस को  अपने जीवन में अमल करना है। जब ईश्वर हमसे बातें करते हैं तब हम कैसे इन्हें छोडें?

      बाइबिल में 1253 बार यह आहवान है कि ईश्वर हमें सुनने के लिए न्योता देते हैं। जब वचन रूपी ईश्वर पृथ्वी पर उतर आये, फिर जब ताबोर पहाडी पर रूपान्तरण की वेला में पिता ईश्वर नें कहा, ‘ यह मेरा प्रिय पुत्र है। मैं इस पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ, इसकी सुनो (मत्ती 17: 5) बाइबिल का यह श्रवण कान से न होकर ह्रदय से करने लायक काम है। हम वचन से पूर्णत: लगे रहें, ईश्वर की बातों को  अपना दायित्व मान कर जीवन में लायें। जैसे एक बच्चा माँ के हाथों में अपने- आप को  पूर्णत: वहन करने लायक पेश करता है वैसे एक आश्रय चेतना वचनाधिष्ठित जीवन के लिए ज़रूरी है। सन्त याकूब अपने लेख में हमें यह आहवान देते हैं (याकुब 1:22)।

      ईसा की सलाह की प्रतिध्वनि है, प्रस्तुत वचन। मिसाल के तौर पर लूकस 11: 28 में ईसा की कथनी वर्णित है- वे कहीं अधिक धन्य है, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं ‘। और एक अवसर में ईसा ने कहा: मेरी माता और मेरे भाई वही है, जो ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं (लूकस 8:21)। एक बार ईसा ने वचन की, बीज से तुलना की है (मत्ती 13: 4-8)। सन्त याकूब ने हमारे ह्रदय रूपी खेत में बोये बीज के रूप में ईश्वर बुराइयाँ छोड कर अपने दिल में पडे वचन-बीजों को विनम्रता से स्वीकारें, जो अपनी आत्मा को बचाने में समर्थ है। मगर केवल सुनने या स्वागत केरने से कोई फायदा नहीं। बीजों को इसलिए बोया है कि वे पल कर ज्यादा गुना फल निकाले। इस प्रकार वचनों कों कर्मण्य बनायें, वे काफी फल दें। ईसा ने दो पुत्रों का दृष्टान्त पेश किया था- पिता ने एक बेटे से कहा कि दाखबारी जा कर काम करो। उसने वहाँ जाने की बात स्वीकारी, मगर वह उधर नहीं गया। दूसरे बेटे ने जवाब के रूप में कहा कि मैं नहीं जाऊँगा। मगर थोडी देर बाद मन बदल का वह दाखबारी गया और उसने भरसक काम किया (मत्ती 21:23-3०)। वचन के श्रवण का मतलब दूसरे ने अपने कर्म से प्रकट किया। पहाडी भाषण के अन्त में ईसा ने इस प्रकार घोषणा की, ‘जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर पलता है वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है, जिसने चट्टाल पर अपना घर बनवाया था’ (मत्ती 7:24) फिलिप्पि 2:16 में सन्त पौलुस का आह्वान है – तुम संजीवन शिक्षा प्रदर्शित कारते रहें’।

हम वचन का पालन करें,— Jesus

     ईसा हर वचन से अपना पूरा प्यार प्रकट कर रहे हैं। हमारा काम है- वचन को मांसधारण करना। ईसा का वचन अपनाएँ और उन्हें प्राण दे दें।ह्रम वचनों को अमल में लाते हैं तो एक बडी संजीवन शक्ति हमारे चारों ओर और हममें स्वतन्त्र रूप से प्रवाहित होगी। सुसमाचार अन्दरूनी ढंग से परिवर्तन ला कर, ईश्वर-प्रेम हमसे दूसरों की ओर बहाने लायक। ईश्वरवचन से हमारा सही संपर्क हो। ईश्वर से उल्टे प्रेम कारने का सही मार्ग यह है। हमें तब आन्तरिक आजा़दी महसुस होगी। दुनिया की शक्ति हमें जो  शान्ति कृपा और सुख न दे पाती, वे हमें मिलेंगे। सारे बन्धनों  से हम मुक्त हो जायेंगे। यही नहीं ईसा स्वतन्त्र रूप से हमारे अन्दर काम करेंगे।

      तब तो हम वैयक्तिक पारिवारिक तथा सामाजिक तौर पर ईसा के उत्तम साक्षी हो जायेंगे। जो मुझे बल प्रदान कारते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकते हैं (फिलि 4:13)। हमारे लिए निश्मचत दोड प्रतियोगिता में निरन्तर उत्साह के साथ हम भाग लें (इब्रा 12:2) । हम ईसा को  लक्ष्य मान कर दौडें। हर कोई लक्ष्य पहुँचने की शक्ति और उत्साह को अपनाए। हमें याद हो ईश्वर हमारे साथ हैं, हमारे मन में सुदृढ फैसला ही, तब तो हमें ज़रुरी शक्त और उत्साह मिलेंगे। आप लोग अथक परिश्रम और आध्यात्मिक उत्साह से प्रभु की सेवा करें। आशा आप को आनदित बनाये रखे । आप संकट में धैर्य रखें और प्रार्थना में लगे रहें (रोमि 12:11-12) ।


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