वर्ष का 27वाँ सामान्य रविवार
27th Sunday in Ordinary time- Sunday Gospel
- पहला पाठ :इसायाह का ग्रन्थ अध्याय: 5 :1-7
- दूसरा पाठ : फिलिप्पियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र अध्याय: 4 : 6-9
- सुसमाचार :सन्त मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार अध्याय : 21 :33-43
Sunday Gospel 04 October 2020, 27th Sunday in Ordinary Time.
मैं अपने मित्र की दाखबारी के विषय में अपने मित्र को एक गीत सुनाऊँगा । उपजाऊ ढाल पर नेरे मित्र की दाखबारी थी । उसने इसकी जमीन खुदवायी, इस में से पत्थर निकाल दिये और इस में बढिया दाखलता लगवा दी । उसने इसके बीच में मीनार बनवायी और इस में एक कोल्हू भी खुदवाया। उसे अच्छी फ़सल की आशा थी, किन्तु उसे खट्टे अंगूर ही मिले ।
“येरुसालेम के निवासियो! यूदा की प्रजा! अब तुम मेरा तथा मेरी दाखबारी का न्याय करो । कौन बात ऐसी थी, जो में अपने दाखबीरी के लिए कर सकता था और जिसे मैँने उसके लिए नहीँ किया? मुझे अच्छी फ़सल की आशा थी, उसने खट्टे अंगूर क्यों पैदा किये? अब, मैं तुम्हें बताऊँगा कि अपनी दाखबारी का क्या करूँगा । मैं उसका बाड़ा हटाऊँगा और पशु उस में चरने आयेंगे । मैं उसकी दीवारें ढाऊँगा और लोग उसे पैरों तले रौंदेगे । वह उजड़ जायेगी; कोई उसे छाँटने या खोदने नहीं आयेगा और उस में झाड़-झंखाड उग जायेगा। मैं बादलों को आदेश दूँगा कि वे उस पर पानी नही बरसाये ।”
विश्वमण्डल के प्रभु की यह दाख़बारी इस्राएल का घराना है और इसके उत्तम पौधे यूदा की प्रजा हैं । प्रभु को न्याय की आशा थी और भ्रष्टाचार दिखाई दिया । उसे धर्मिकता की आशा थी और अधर्म के कारण हाहाकार सुनाई पडा ।
किसी बात की चिन्ता न करें। हर जरूरत में प्रार्थना करें और विनय तथा धन्यवाद के साथ ईश्वर के सामने अपने निवेदन प्रस्तुत करें और ईश्वर की शान्ति, जो हमारी समझ से परे हैं, आपके हृदयों और विचारों को ईसा मसीह में सुरक्षित रखेगी । भाइयो! अन्त में यह जो कुछ सच है, आदरणीय है; जो कुछ न्यायसंगत है, निर्दोष है; जो कूछ प्रीतिकर है, मनोहर है; जो कुछ उत्तम है, प्रशंसनीय है ऐसी बातों का मनन किया करें। आप लोगों ने मुझ से जो सीखा, ग्रहण किया, सुना और मुझ में देखा, उसके अनुसार आचरण करें और शान्ति का ईश्वर आप लोगों के साथ रहेगा।
27th Sunday in Ordinary time- Sunday Gospel
सुसमाचार :
सन्त मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार अध्याय : 21 :33-43
वह अपनी दाखबारी का पट्ठा दूसरे असामियों को देगा।
“एक दूसरा दृष्टान्त सुनो । किसी भूमिधर ने दाख की बारी लगवायी. उसके चारों ओंर घेरा बनवाया, उस में रस का कुण्ड खुदवाया ओर पवका मचान बनवाया । तब उसे असामियों को पट्ठे पर दे कर वह परदेश चला गया । फसल का समय आने पर उसने फसल का हिस्सा वसूल करने के लिए असामियों के पास अपने नौकरों को भेजा । किन्तु असामियों ने उसके नौकरों को पकड कर उन में से किसी को मारा…पीटा, किसी की हत्या कर दी और किसी को पत्थरों से मार डाला । इसके बाद उसने पहले से अधिक नौकरों को भेजा और असामियों ने उनके साथ भी वैसा ही किया ।
अन्त में उसने यह सोच कर अपने पुत्र को उनके पास भेजा कि वे मेरे मूत्र का आदर करेंगे । किन्तु पुत्र को देख कर असामियों ने एक दूसरे से कहा, ‘यह तो उत्तराधिकारी है । चलो, हम इसे मार डालें और इसकी विरासत पर कब्जा कर लें ।’ उन्होंने उसे पकड लिया और दाखबारी से बाहर निकाल कर मार डाला । जब दाखबारी का स्वामी लौटेगा, तो वह उन असामियों का क्या करेगा?” उन्होनें ईसा से कहा, “वह उन दुष्टों का सर्वनाश करेगा और अपनी दाखबारी का पट्ठा दूसरे असामियों को देगा, जो समय पर फसल का हिस्सा देते रहेंगे” ।
ईसा ने उन से कहा, ” क्या तुम लोगों ने धर्मग्रन्थ में कभी यह नहीं पढा? करीगरों ने जिस पत्थर को बेकार समझ कर निकाल दिया था, वही कोने का पत्थर बन गया है । यह प्रभु का कार्य है । यह हमारी दृष्टि में अपूर्व है । इसलिए में तुम लोगों कहता हूँ… स्वर्ग का राज्य तुम से ले लिया जायेगा और ऐसे राष्ट्रों को दिया जायेगा, जो इसका उचित फल उत्पन्न करेगा ।
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