- पहला पाठ :इसायाह का ग्रन्थ अध्याय: 25 ; 6-10
- दूसरा पाठ : फिलिप्पियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र अध्याय: 4 : 12-14,19-20 ;
- सुसमाचार :सन्त मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार अध्याय : 22 :1-14
वर्ष का 28वाँ सामान्य रविवार
पहला पाठ :
इसायाह का ग्रन्थ अध्याय: 25 ; 6-10
विश्वमण्डल का प्रभु इस पर्वत पर सब राष्ट्रों के लिए एक भोज का प्रबन्ध करेगा: उस में रसदार मांस परोसा जायेगा और पुरानी तथा बढिया अंगूरी 1 वह इस पर्वत पर से सब लोगों तथा सब राष्ट्रों के लिए कफ़न और शोक के वस्त्र हटा देगा,
वह सदा के लिए मृत्यु समाप्त करेगा। प्रभु-ईश्वर सबों के मुख से आँसू पोंछ डालेगा। वह समस्त पृथ्वी पर से अपनी प्रजा का कलंक दूर कर देगा । प्रभु ने यह कहा है ।
उस दिन लोग कहेंगे — दिखो! यही हमारा ईश्वर है । इसका भरोसा था । यह हमारा उदृद्वार करता है । यही प्रभु है, इसी पर भरोसा था । हम उल्लसित हो कर आनन्द मनायें, क्योकि यह हमें मुक्ति प्रदान करता है ।’
इस पर्वत पर प्रभु का हाथ बना रहेगा, किन्तु जिस तरह तिनक खाद के ढेर में रौंदे जाते हैं, उसी तरह मोआब प्रभु द्वारा रौंदा जायेगा ।
दूसरा पाठ :
फिलिप्पियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र अध्याय: 4 : 12-14,19-20 ;
मैं दरिद्रता तथा सम्पन्नता, दोनों से परिचित हूँ। चाहे परितृप्ति हो या भूख, समृद्धि हो या अभाव -मुझे जीवन के उतार-चढाव का पूरा अनुभव है । जो मुझे बल प्रदान करते हैं, मैं उनकी सहायता से सब कुछ कर सकता हूँ। फिर भी आप लोगों ने संकट में मेरा साथ देकर अच्छा किया।
मेरा ईश्वर आप लोगों को ईसा मसीह द्वारा महिमान्वित कर उदारतापूर्वक आपकी सब आवश्यकताओं को पूरा करेगा। हमारे पिता ईश्वर को अनन्त काल तक महिमा! आमेन!
28th Sunday in Ordinary time- Sunday Gospel
सुसमाचार :
सन्त मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार अध्याय : 22 :1-14
जितने भी लोग मिल जायें, सब को विवाह-भोज में बुला लाओ ।
ईसा उन्हें फिर दृष्टान्त सुनाने लगे । उन्होंने कहा, “स्वर्ग का राज्य उस राजा के सदृश है, जिसने अपने पुत्र के विवाह में भोज दिया । उसने आमन्त्रित लोगों को बुला लाने के लिए अपने सेवकों को भेजा, लेकिन वे आना नहीं चाहते थे ।
राजा ने फिर दूसरे सेवकों को यह कहते हुए भेजा, ‘अतिथियों से कह दो… देखिए! मैंने अपने भोज की तैयारी कर ली है । मेरे बैल और मोटे-मोटे जानवर मारे जा चुके हैं । सब कुछ तेयार है;विवाह-भोज में पधारिए ।’ अतिथियों ने इस की परवाहा नहीं की । कोई अपने खेत की और चला गया, तो कोई अपना व्यापार देखने। दूसरे अतिथियों ने राजा के सेवकों को पकड कर उनका अपमान किया और उन्हे मार डाला । राजा को बहुत क्रोध आया । उसने अपनी सेना भेज कर उन हत्यारों का सर्वनाश किया और उनका नगर जला दिया । “तब राजा ने अपने सेवकों से कहा, ‘बिवाह-भोज की तैयारी तो हो चुकी है. किन्तु अतिथि इसके योग्य नहीं ठहरे ।
इसलिए चौराहों पर जाओं और जितने भी लोग मिल जायें, सब को विवाह-भोज में बुला लाओ ।’ सेवक सडकों पर गये ओर भले-बुरे जो भी मिले, सब को बटोर कर ले आये और विवाह-मण्डप अतिथियों से भर गया । ”राजा अतिथियों को देखने आया, तो वहाँ उसकी दृष्टि एक ऐसे मनुष्य पर पडी. जो विवाहोत्सव के वस्त्र नहीं पहने था ।
उसने उस से कहा, ‘भई विवाहोत्सव के वस्त्र पहने बिना तुम यहाँ कैसे आ गये?” वह मनुष्य चुप रहा। तब राजा अपने सेवकों से कहा, ’इसके हाथ…पैर बाँध कर इसे बाहर, अन्धकार में फेंक दो । वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे ।
क्योंकि बुलाये हुए तो बहुत हैं, लेकिन चुने हुए थोडे हैं ।”
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