- पहला पाठ: प्रकाशना ग्रन्थ अध्याय ७:२-४,९-१४
- दूसरा पाठ : सन्त योहन का पहला पत्र अध्याय ३:१-३
- सुसमाचार: सन्त मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार अध्याय ५:१-१२
वर्ष का ३१ वाँ सामान्य रविवार सब संतों का पर्व
पहला पाठ:
प्रकाशना ग्रन्थ अध्याय ७:२-४,९-१४
मैंने एक अन्य दूत को पूर्व से ऊपर उठते देखा। जीवन्त ईश्वर की मुहर उसके पास थी और उन चार दूतों से, जिन्हें पृथ्वी और समुद्र को उजाड़ने का अधिकार मिला था, पुकार कर कहा, “जब तक हम अपने ईश्यर के दासों के मस्तक पर मुहर न लगायें, तब तक तुम न तो पृथ्वी को उजाडो, न समुद्र को और न वृक्षों को”। और मैंने मुहर लगे लोगों की संख्या सुनी – यह एक लाख चौवालीस हजार थी और ये इस्राएलियों के सभी वंशो में से थे : इसके याद मैंने सभी राष्ट्रों, वशों, प्रजातियों और भाषाओं का एक ऐसा विशाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। ये उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियों लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खडे थे और ऊँचे स्वर से पुकार-पुकार कर कह रहे थे, “सिहासन पर विराजमान हमारे ईश्वर और मेमने की जय!” तब सिहासन के चारों ओर खड़े स्वर्गदूत, वयोवृद्ध और चार प्राणी, सब-के-सब सिंहासन के सामने मुँह के बल गिर पड़े और उन्होंने यह कहते हुए ईश्वर की आराधना की, “आमेन ! हमारे ईश्वर को अनन्त काल तक स्तुति, महिमा, प्रज्ञा, धन्यवाद, सम्मान, सामर्थ्य और शक्ति ! आमेन !’ वयोवृद्धों में एक ने मुझ से कहा, “ये उजले वस्त्र पहने कौन हैं और कहां से आये हैं? मैंने उत्तर दिया, “महोदय! आप ही जानते हैं” और उसने मुझ से कहाँ, “ये वे लोग हैं, जो महासकट से निकल कर आये हैं। इन्होने मेमने के रक्त से अपने वस्त्र धो कर उजले कर लिये हैं।
दूसरा पाठ :
सन्त योहन का पहला पत्र अध्याय ३:१-३
पिता ने हमें कितना प्यार किया है! हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं। संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उसने ईश्वर को नहीं पहचाना है। प्यारे भाइयो! अब हम ईश्वर की सन्तान हैं, किन्तु यह अभी तक प्रकट नहीं हुआ है कि हम क्या बनेंगे। हम इतना ही जानते हैं कि जब ईश्वर का पुत्र प्रकट होगा, तो हम उसके सदृश बन जायेंगे , क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे, जैसा कि वह वास्तव में है।
जो उस से ऐसी आशा करता है, उसे वैसा ही शुद्ध बनना चाहिए, जैसा कि वह शुद्ध है।
Solemnity of All Saints 1st Nov 2020
सुसमाचार:
सन्त मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार अध्याय ५:१-१२
खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग में तुम्हें महान पुरस्कार प्राप्त होगा।
ईसा यह विशाल जनसमूह देखकर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गए। उनके शिष्य उनके पास आये और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः
“धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं। स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
धन्य हैं वे जो नम्र हैं! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।
धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।
घन्य हैं, वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं। वे तृप्त किये जायेंगे।
धन्य हैं वे, जो दयालू हैं! उन पर दया की जायेगी।
धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल हैं! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।
धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं! वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं। खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग में तुम्हें महान पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया।
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