30th Sunday in Ordinary time- Sunday Gospel
वर्ष का 30 वाँ सामान्य रविवार
30th Sunday in Ordinary time- Sunday Gospel
- पहला पाठ : निर्गमन का ग्रन्थ अध्याय: 22:20-26
- दूसरा पाठ : थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र अध्याय: 1:5-10
- सुसमाचार :सन्त मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार अध्याय :22:34-40
30th Sunday in Ordinary time- Sunday Gospel
पहला पाठ :
निर्गमन का ग्रन्थ अध्याय: 22:20-26
तुम लोग परदेशी के साथ अन्याय मत करो, उस पर अत्याचार मत करो, क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे।
तुम विधवा अथवा अनाथ के साथ दुर्व्यवहार मत करो। यदि तुम उनके साथ दुर्व्यवहार करोगे और वे मेरी दुहाई देंगे, तो मैं उनकी पुकार सुनूँगा और मेरा क्रोध भड़क उठेगा। मैं तुम को तलवार के घाट उतरवा दूँगा और तुम्हारी पत्नियाँ विधवा और बच्चे अनाथ हो जायेंगे।
“यदि तुम अपने बीच रहने वाले किसी दरिद्र देश-भाई को रुपया उधार देते हो, तो सूदखोर मत बनो तुम उस से ब्याज मत लो। यदि तुम रहने के तौर पर किसी की चादर लेते हो, तो सूर्यास्त से पहले उसे लौटा दो; क्योंकि ओढ़ने के लिए उसके पास और कुछ नहीं है। वह उसी से अपना शरीर ढक कर सोता है। यदि वह मेरी दुहाई देगा, तो मैं उसकी सुनूँगा, क्योंकि मैं दयालु हूँ।
दूसरा पाठ :
थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र अध्याय: 1:5-10
30th Sunday in Ordinary time- Sunday Gospel
सुसमाचार :
सन्त मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार अध्याय :22:34-40
“अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो।”
और उन में से एक शास्त्री ने ईसा की परीक्षा लेने के लिए उन से पूछा, गुरुवर! संहिता में सब से बड़ी आज्ञा कौन-सी है?” ईसा ने उस से कहा, “अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो। यह सब से बड़ी और पहली आज्ञा है।
दूसरी आज्ञा इसी के सदृश हैअपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। इन्हीं दो आज्ञायों पर समस्त संहिता और नबियों की शिक्षा अवलम्बित हैं।”