32th Sunday in Ordinary time- Sunday Gospel
- पहला पाठ: प्रज्ञा ग्रन्थ अध्याय 6:12-16
- दूसरा पाठ: थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र अध्याय 4:13-18
- सुसमाचार: सन्त मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार अध्याय 25:1-13
वर्ष का 32वाँ सामान्य रविवार – Sunday Gospel
पहला पाठ: प्रज्ञा ग्रन्थ अध्याय 6:12-16
प्रज्ञा देदीप्यमान है। वह कभी मलिन नहीं होती। जो लोग उसे प्यार करते हैं, वे उसे सहज ही पहचानते हैं। जो उसे खोजते है, वे उसे प्राप्त कर लेते हैं। जो उसे चाहते हैं, वह स्वयं आ कर उन्हें अपना परिचय देती है।
जो उसे खोजने के लिए बड़े सबेरे उठते हैं, उन्हें परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। वे उसे अपने द्वार के सामने बैठा हुआ पायेंगे।
उस पर मनन करना बुद्धिमानी की परिपूर्णता है। जो उसके लिए जागरण करेगा, वह शीघ्र ही पूर्ण शान्ति प्राप्त करेगा। वह स्वयं उन लोगो की खोज में निकलती है, जो उसके योग्य है। वह कृपापूर्वक उन्हें मार्ग में दिखाई देती है और उनके प्रत्येक विचार में उन से मिलने आती है।
दूसरा पाठ: थेसलनीकियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र अध्याय 4:13-18
भाइयो! हम चाहते हैं कि मृतकों के विषय में आप लोगों को निश्चित जानकारी हो। कहीं ऐसा न हो कि आप उन लोगों की तरह शोक मनायें, जिन्हें कोई आशा नहीं है।
हम तो विश्वास करते हैं कि ईसा मर गये और फिर जी उठे। जो ईसा में विश्वास करते हुए मरे, ईश्वर उन्हें उसी तरह ईसा के साथ पुनर्जीवित कर देगा। हमें मसीह से जो शिक्षा मिली है, उसके आधार पर हम आप से यह कहते हैं – हम, जो प्रभु के आने तक जीवित रहेंगे, मृतकों से पहले महिमा में प्रवेश नहीं करेंगे,
क्योंकि जब आदेश दिया जायेगा और महादूत की वाणी तथा ईश्वर की तुरही सुनाई पडेगी, तो प्रभु स्वयं स्वर्ग से उतरेंगे। जो मसीह में विश्वास करते हुए मरे, वे पहले जी उठेंगे।
इसके बाद हम, जो उस समय तक जीवित रहेंगे, उनके साथ बादलों में आरोहित कर लिये जायेंगे और आकाश में प्रभु से मिलेंगे। इस प्रकार हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे। आप इन बातों की चर्चा करते हुए एक दूसरे को सान्त्वना दिया करें।
32th Sunday in Ordinary time- Sunday Gospel
सुसमाचार: सन्त मत्ती के अनुसार पवित्र सुसमाचार अध्याय 25:1-13
उस समय स्वर्ग का राज्य उन दस कुँआरियों के सदृश होगा, जो अपनी-अपनी मशाल ले कर दुलहे की अगवानी करने निकलीं |
उन में से पाँच नासमझ थीं और पाँच समझदार।
नासमझ अपनी मशाल के साथ तेल नहीं लायीं।
समझदार अपनी मशाल के साथ-साथ कुपियों में तेल भी लायीं।
दूल्हे के आने में देर हो जाने पर ऊँघने लगीं और सो गयीं।
आधी रात को आवाज़ आयी, “देखो, दूल्हा आ रहा है। उसकी अगवानी करने जाओ।’
तब सब कुँवारियाँ उठीं और अपनी-अपनी मशाल सँवारने लगीं।
नासमझ कुवारियों ने समझदारों से कहा, ‘अपने तेल में से थोडा हमें दे दो, क्योंकि हमारी मशालें बुझ रही हैं’।
समझदारों ने उत्तर दिया, ‘क्या जाने, कहीं हमारे और तुम्हारे लिए तेल पूरा न हो। अच्छा हो. तु लोग दुकान जा कर अपने लिए खरीद लो।’
वे तेल खरीदनें गयी ही थीं कि दूलहा आ पहुँचा। जो तैयार थीं, उन्होंने उसके साथ विवाह-भवन में प्रवेश किया और द्वार बन्द हो गया।
बाद में शेष कुँवारियों भी आ कर बोली, प्रभु! प्रभु! हमारे लिए द्वार खोल दीजिए’।
इस पर उसने उत्तर दिया, “मैं तुम से यह कहता हूँ मैं तुम्हें नहीं जानता’। इसलिए जागते रहो, क्योकि तुम न तो वह दिन जानते हो और न वह घडी।
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